चिरकुमार-सभा | Chirkumar - Sabha

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Chirkumar - Sabha  by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ चिरकुमार-सभा | बिंधवा सास उन्हें अनाथ दुटुम्बके अभिभावक तथा संरक्षक समझती है। जाड़ोंके महीने उन्होंने सासके आम्रहसे कलकत्तेमें अपने ससुराल्‍में डी निताये ¡ उनके वरह रहनेपर साटी-समितिमे धरम मच गई । कलकत्तेमें उनके निवासके अवसरपर एक बार जी पुरबाखके साथ अक्षयकुमारकी ये बातें हुई:--- पुर्बाछा---अगर तुम्हारी अपनी बहनें होती, तो में भी देखती कि तुम कैसे चुप रहते ! आज तक एक एकके तीन तीन चार चार वर खोज छाये होते ! वे मेरी बहनें हैं, इसीलिये--- अक्षय--मानव-चरित्रके सम्बन्धमें तुमसे कोई बात छिपी नहीं है। अपनी बहन और ज्जीकी बहनमें कितना प्रमेद है, यद्द बात तुमने इसी छोटी अवस्थामें ही माछ्म कर ली है। कुछ भी हो, ससुरजीकी किसी भी छड़कीको दूसरेके हाथ सौंपनेकी जी नहीं चाहता--इस सम्बन्धमें मुझमें उदारताकी कमी है, यह बात माननी ही पड़ेगी । पुरबाखने सामान्य करोधकां भाव दिखलाकर गम्भीर होकर कंदा-- देखो, तुम्हारे साथ मुझे एक समझौता करना है । अक्षय---एक चिरस्यायी समन्नौता तो मन्त्रके द्वारा ॒विवाहके दिन ही हो चुका है, फिर क्या एक दूसरा करना होगा !--- पुरबाला---पह उतना भयानक नहीं है । यह शायद उतना असह्म भी नहीं होगा । भ्क्षयने रासवा्ोका-सा हाव-भाव प्रकट करके कहदा--सखी, अगर ऐसा है, तो जी खोलकर कहो | और फिर गाना झुरू कर दिया---




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