एकता की वेदी पर | Ekata Ki Vedi Par
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्रहिसा की विजय १५
৬
के क्या समाचार है ?
भणक इस वार महात्मा गौतम बुद्ध आपको पकडने आ रहे
है।
ग्रंगुलिमाल वह ढोगी, जिसने अनेक युवकों को अकर्मण्य
और भिखारी बना दिया है ”? वह पाखडी, जो अहिसा का
उपदेश देकर कायरता का प्रचार कर रहा है ? वह मुझे
पकड़ने आ रहा है ” क्या मेरे ही हाथो वह अपना प्राणान्त
चाहता है ?
भणक . ढोगी और पाखडी न कहिए उन्हे, महाराज ! मैने उन्हे
देखा है । उनमे अपूर्व तेज और अद्भुत आकर्षण है । उन्हें
देखकर एेसा लगता है कि उनके चरणो मे मस्तक रख दू ।
प्रगुलिमाल (आ्राकोश से)--कैसी कायरता की वाते करते हो
भणक ! इससे तो अच्छा था, तुम मेरे गुप्तचर न होकर
किसी की स्त्री होते । वीर पुरुष कभी तीर-तलवार से भी
विचलित नही होते, वह तो एक साधारण साधु है ।
भणक . साधारण साधु नही, महाराज ! देखिए, वे इधर ही
आ रहे है ।
श्रंगुलिमाल . (देखते हुए)--अरे ! यही है वह पाखडी ” देखता
हूँ | (कुछ काँपता हुआ) पर यह क्या ? मेरे हृदय में यह
हलचल कंसी ? अरे, मैं उसकी ओर आकर्पित क्यों हो
रहा हूँ ” (क्रोध से) भणक ! हट जा मेरे सामने से ! तूने
मे शक्तिहीन वना दियाहै। हट जा । (भणक का गमन)
अरे पाखडी साधु ! कहाँ वढा आ रहा है मरने के लिए ?
भाग जा यहाँ से अपने प्राणो को लेकर |
गौतम (श्रागे बढते हुए)--मै मरने के लिए नही आ रहा हूँ
अग्रुलि | मैं मरते हुए को बचाने श्रा रहा हूँ, मैं सोए हुए.
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