महाप्रस्थान के पथ पर | Mahaprasthan Ke Path Par

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Book Image : महाप्रस्थान के पथ पर  - Mahaprasthan Ke Path Par

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाप्रस्थान के पथ पर उच्छूवास-सर्वैस्व लोगो को भी में जानता हूँ, अतः अपनेटको भी उनसे अलग होते नही देख सकता। आज सभी अच्छे मार्लम हो; रहे हैं। जो बन्धु है, जो विरूप रै, जिनको छोड़ श्राया हू! जो जन्मभूमि मेरे जीवन का आधार है, समाज चनौर वस्ती श्रप्र सिद्ध रौर अनादृत, कोई भी तो अपना-पराया नहीं । आज अपना-पराया नहीं। आज मेरा सन्यासी का वेश है, किन्तु वह केवल परिच्छद्‌ है, केवल बाह्य आवरण है, देश की वात सोचते ही, इस समय शरीर के लाखो स्नायु फनभन करके वज उठते हैं। सहज ही मे उस दिन जिस ममता का आश्रय छोड़कर चल दिये, उदासीन होकर जिनस विदा लेकर चले, आज इस संन्यास के कृत्रिम आवरण के नीचे विच्छेद-कातर हृदय बोलता है, 'तुम लोग हमे भूल मत जाना, हम हैं, बचे हैं |! एक दिन सभी मरेगे, किन्तु निधिन्ह्‌ होकर मिट जाने की तरह सान्त्वनाहीन सृत्यु और कुछ नहीं! हम निरुपाय, दुबल, भाग्य के खिलोने, फिर भी हम निरन्तर वचे रहना ही चाहते = । यही वचने की चेष्ठा समस्त प्रथ्वी पर अविश्रान्त रूप मे चल रही है। कोई वचता है नव-जीवन-सष्टि के बीच में, कोई शिल्प ओर साहित्य में आत्म-प्रकाश' करते हुए, कोई ख्याति ओर यश के लिए बचना चाहता है-यह जो समाज, सभ्यता, विज्ञान, साम्राज्य-प्रतिष्ठा हैं, इनके मूल में मनुष्य की बचने की अत्यन्त पिपासा रहती है। जो जीवन को असार सममकर सोक्ष-प्राप्ति की छुघा में ती्थ-भ्रमण मे घूमते रहते हैं, वे भी बचे रहना चाहते हैं, उसमें भी, रास्ते की धर्मंशालाओ मे अपना-अपना नाम लिखे रखने का उनका कैसा अपरिसीम आग्रह ओर अध्यव्यवसाय दिखाई देता है । बरह्मचारी उठा चौर वोला- चलो दादा, श्यद्‌ वारह बजे का समय हो गया है, निश्चय ही आपको भूख लगी है । नि श्वास छोड़कर भोला ओर कम्बल उठाकर खडे हो गये । वोलला- कितने मील तय कर चुके होगे ्रह्यचारी ? रास्ते मे मील-पत्थर दहै । ब्रह्मचारी सन ही मन हिसाव लगाकर बोला--लगभग पाँच सील | । ओर कुछ दूरी पर गरुड़ चट्टी आ गई। एक वड़ी धमशाला है । लीचे एक दूकान, उसमें अधिक मूल्य पर सभी खाने की चीज़ें मिल जाती हैं। धमंशाला के पास एक सुन्दर वगीचा और तालाब है | पास में पहाड़ से एक झरना बहता है, उसका ही पानी इस तालाब से. यात्रियो के लिए एकत्र किया जाता है। चट्टी मे ठहरनेवालो के लिए'




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