गुजरती साहित्य का इतिहास | Gujrati Sahithya Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
66 MB
कुल पष्ठ :
343
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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गजराती ओर उसकामल | ९
की। हेमचन्द्र के गुरुदेव चन्द्र ने सं० ११६० में १६ हजार पदों का एक अपभ्रंश এ
_ काव्य शांतिनाथ चरित्र लिखा। उन्होंने एक दूसरेछोटे अपअंश काव्य सुलसा- द
ख्यानः की भी रचना कौ । पडसिरिचरिउ' के प्रणेता धा्िल थे । जिनदन्त सुरि
ने तीन अपभ्रंश काव्यों की रचना की । 'पट्टावली' के रचयिता पल्ह थे। वादि-
: देव सूरि ने गुरुस्तवन' तथा लक्ष्मणगणी न सुपासनाह चरित्र प्राकृत में लिखा ।
. इन दोनों काव्यों में अपश्रंश के पद्य जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े है । ये अंतिम दो कवि
हेमचन्द्र के समकालीन थ। द
आचायं हेमचन्द्र गुजरात के सर्वश्रेष्ठ एवं महान् पंडित माने जाते हैं ।
उन्होने अनेकाथं संग्रह' तथा अभिधान चिन्तामणि'--जंसे कोशों की रचना की
और छन्दानशासन' एवं काव्यानशासन' का सर्जन किया। हेमचन्द्र ने आयुर्वेद
का एक ग्रंथ निघण्टशेष', योग संबंधी ग्रंथ योगशास्त्र' तथा तीर्थंकरों और
महात्माओं के चरित्र से युक्त त्रिषष्टि-शलाका-पुरुषचरित' नामक ग्रंथ लिखा।
उनका सिद्ध हैम ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसम संस्कृत, प्राकृत और अपश्रंश
. के व्याकरणों का वर्णन है। उन्हें अपभ्रंश का पाणिनि कहा जा सकता है।
उनके उद्धरण अपश्रंश के श्रेष्ठ काव्य हैं । उनका वास्तविक नाम चांगदेव था और
वे धन्धूका के एक मोढ वणिक थे । उन्होंने खंभात में सं० ११५० में दीक्षा ग्रहण
की, जबकि इस प्रान्त के सूबेदार उदा मेहता थे । सं० ११६६ में वे हेमचन्द्रसूरि
. हो गये | सं०११८१ में वे सिद्धराज के सम्पर्क में आये। सं० ११९१ में मालवा पर
विजय प्राप्त की गयी। जब सिद्धराज ने भोज के ग्रंथों को देखा, तब उसकी इच्छा... |
हई कि गुजरात के विद्वान् भी एसे विद्रत्तापुणं प्रथ लिखि । हेमचन्द्र ने प्रसिद्ध ही
व्याकरण सिद्ध हैम' की रचना आरंभ की, जिसका नामकरण उनके आश्रयदाता “ |.
सिद्धराज ओौर स्वथं हेमचन्द्र के अद्धंनामों को मिलाकर हआ । सिद्ध-हैम ||
में आये व्याकरण के अनेक नियमों की व्याख्या करते हुए उन्होने ्रयाश्रय काव्य
की भी रचना की । उन्होंने देशी नाम माला भी लिखी, जो देशी शब्दों का एक
कोश है। अपभ्रंश तथा पुरानी गृजराती की शुद्ध रूप-रेखा ओर विकास
को निर्चित करने मे हेमचन्द्र के ये ग्रंथ बहुत बड़ सहायक ह् । युग का निर्माण
करनेवाले उनके ग्रंथ सिद्ध हैमे का सिद्धराज ने बहुत अधिक आदर किया
उसकी अनेक प्रतिलिपियाँ कराकर उन्होंने भांरत के विभिन्न भागों में भेजीं
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