बापू की छाया में | Bapu ki Chhaya mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वपरिचय अपना परिचय देनेमें मुप्ते खकोच हो रहा है। केक्ित जब में किसौका पिला सेल पढ़ुपा हुं ता सहज ही झेखकका परिचय बालनेष्ठी मेरौ भिष्छा हो जाती है। मेरे शिन धंस्मरणोंकों पढ़कर पाठ्कोंको यह जिच्छा होना स्थामाषिक है। बापूजी कहते ये कि नजी शाकछषीम माके परमते मारम्म होनी श्राहिमे। जि पर भने विकार क्षिमा শ্রী मुझे रूगधा है कि सकि मर्मसते सहीं बल्कि दादी दौर तातौके गर्मसे होमी भाहिये। और बह बहीसे सारम्म होती है। सापके शसछू-मुषा रमें भी मुझे मही झतुमद रूया है। मुश আনা साषारण ष्यन्ति बापूजौ से महान पुरुपका दुढाए प्राप्त कर स्का जिसका दर्शत अनताको मिक्त सके जिस कोमसे बोड़ासा मपता परित्रय देगा मुझे कतिवार्ये रूपा है। बापूजीके हृरयको भिस इद ठक प्रामीण मारतने घेर शिया बा শা किस हृष हक़ मे अपनी अमूस्य शक्ति अपार सहनशीकृता तंया घचौरणके साथ भ्लेक्ठ देशातीको जूपर बुठानेका प्रयत्न कर सकते थे मिसका मर्म पढिक भ्यो कष समझेंगे यदि में संकोच्रअंध यह भी गे बताओ कि में करीब करौब भेके मिरक्षर देशासी किसामके सिद्रा मौर झुछ न या। जिंतता-सा जागश्पक छिलतेगें भौ भवि किन्हीं पाठफोंको जारमइसाषा जैसा कम तो में भूमये शप्रवापूर्षक झमा-माचता करता हु। मे ब्म बिष्मौ सवण १९५५ कौ फाल्पुत ঘৃদন্চ ड्रितीयाकों तदइनुसार १३ मार्च १८९९, सोमगारको অক্ষ फ्ोटेसे गांव समसपुर (तहसील ফৃজ जिला बलत्दपहर, अृत्तरप्रदेध) में सेक साधारण जाट-परिषारमें हुआ। परिगारका कणा लेतो था। पिताका सलाम भागमर्बसह শা माठाका ताम हुाशोदेणी था। भेरे पिता चार भाओ थे। सबसे बड़े मंगरुसिहट, दूसरे मेरे पिताजी पौरे भाजा दपारामसिह जऔौर चौसे चातरा रप्जौठसिह बे। दादाका शाम फूर्शापह्न और सानाका शाम शकेयम्‌ पा। दादाजौ मौर धाजूगौकों मैने भदौ देला। कनिष्ट लाजा रथजीतषहगीकी बोड़ौसी भाद है। मेरे दादा আত দানা হীরা রী बड़े गोमकत थे । शागाजौकों याय चएते मैने देसा है। मुझे लूपठा है कि मैरे दादाजी सौर लाताजौद्ौ पोमस्तिका बारसा जुध्े मिछा है। ৩




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