बुझने न पाय | Bujhne na Paay
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स ४; १९...
रहा है। ओह, वह इस तरह जिन्दा नहीं रह सकती, उसे बाहर
_ की. हवा चाहिए--वह शुद्ध ओर खुली हवा.के विना जी न्दी
` सकती ! वह अपने घर में ही किंकत्तेब्य-विमूढ़ हो रहती है । वह्
. सोच नहों सकता कि उसे अब कया करना चाहिए ; पर वह कुछ
समझ नहीं पाती | वह वहीं चक्कर काटने लगती है, फिर জী
` उसका मन. शांत नहीं होता, वह कमरे से बाहर निकल पड़ती है,
दरवाजे पर आती है, दरवाजे की फुलवारी में कुछ क्षण घूम-घूम:
कर फूलों को देखती है, उसी क्षण वह् पाती है कि उसका नौकर
. किसुन .फूल के पौदों में पानी पटा रहा है। किसुन उसकी ओर
. देखता है ओर देखते ही हँस कर पूछ बठता है--क््या कुछ फूल
- तोड़ दूँ ? ये गेंदे--नहीं, गुलाव ! देखो, ये केसे फूल रहे हैं ? दृ
तोड़ दे
` . श्रभया कुछ चण तक उसी तरह उदास रहती है, फिर कहती ,
है-नदी-नदी, पेद में दी रहने दो ` वही अच्छा लगता है .
. किसुन कुछ समझ नहीं पाता। वह सीधा है, बूढ़ा है, वह
-. सदा से गाँव में ही रहा, वहीं चालक से जवान हुआ और जवान
से बुढ़ापे में आया ; पर कहीं हिला नहीं--डोला नहीं ! वह अभया
की और देखता है; पर सम नहीं पातां कि किस तरह वह
उसकी अभ्यर्थना करे “फूल तोड़ कर वह देना चाहता था--
आखिर अपनी अभ्यर्थना प्रदर्शित करने के लिए ही तो ! पर
. अभया ने उसकी कद्र नकी, उसने उसके जी को न जाना |
. किसुन अब भी अपनी आँखों में कौतूहल भर कर ठिठका-सा,
खोयासा उसी तरह पड़ा है । पटाने के लिए भरा हुआ कल सा
. इसके हाथ में ज्यों-का-त्यों अटका है 7.
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