बुझने न पाय | Bujhne na Paay

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Bujhne na Paay by अनूप लाल मण्डल - Anoop Lal Mandal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स ४; १९... रहा है। ओह, वह इस तरह जिन्दा नहीं रह सकती, उसे बाहर _ की. हवा चाहिए--वह शुद्ध ओर खुली हवा.के विना जी न्दी ` सकती ! वह अपने घर में ही किंकत्तेब्य-विमूढ़ हो रहती है । वह्‌ . सोच नहों सकता कि उसे अब कया करना चाहिए ; पर वह कुछ समझ नहीं पाती | वह वहीं चक्कर काटने लगती है, फिर জী ` उसका मन. शांत नहीं होता, वह कमरे से बाहर निकल पड़ती है, दरवाजे पर आती है, दरवाजे की फुलवारी में कुछ क्षण घूम-घूम: कर फूलों को देखती है, उसी क्षण वह्‌ पाती है कि उसका नौकर . किसुन .फूल के पौदों में पानी पटा रहा है। किसुन उसकी ओर . देखता है ओर देखते ही हँस कर पूछ बठता है--क््या कुछ फूल - तोड़ दूँ ? ये गेंदे--नहीं, गुलाव ! देखो, ये केसे फूल रहे हैं ? दृ तोड़ दे ` . श्रभया कुछ चण तक उसी तरह उदास रहती है, फिर कहती , है-नदी-नदी, पेद में दी रहने दो ` वही अच्छा लगता है . . किसुन कुछ समझ नहीं पाता। वह सीधा है, बूढ़ा है, वह -. सदा से गाँव में ही रहा, वहीं चालक से जवान हुआ और जवान से बुढ़ापे में आया ; पर कहीं हिला नहीं--डोला नहीं ! वह अभया की और देखता है; पर सम नहीं पातां कि किस तरह वह उसकी अभ्यर्थना करे “फूल तोड़ कर वह देना चाहता था-- आखिर अपनी अभ्यर्थना प्रदर्शित करने के लिए ही तो ! पर . अभया ने उसकी कद्र नकी, उसने उसके जी को न जाना | . किसुन अब भी अपनी आँखों में कौतूहल भर कर ठिठका-सा, खोयासा उसी तरह पड़ा है । पटाने के लिए भरा हुआ कल सा . इसके हाथ में ज्यों-का-त्यों अटका है 7. `~ १५५




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