सिकंदर साह | Sikandar Sah

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Sikandar Sah by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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বিক্ষত ९ श्रस्तू ने सिकन्दर के राजनैतिक तस्तवों के ऐसी अच्छो तरह ससक्रायां था कि उमने उन्‍्हों के सहारे यधासमय येग्यता से फोाम लेकर समस्त एशियाखणड पर विजय पताफा उड़ा । अरस्तू फी शिक्षा से सिकनद्र के पुस्तक पठन पाठन फा शेसा प्रेम जैर अभ्यास हागया था कि बह अपने अन्तरंग था राज्य सम्बन्धी का्य्यां से अवफाश पाते ही सदैव भांति भांति को पुस्तकें पढ़ा फरता था, यहां तफ कि जब वह एशिया में रात दिन लाई फगडे से लगा रहता था उस ” शसपय परी झयकाश पाकर पठन पाटन मे प्रवृत्त हे! जात था। शिक्षर भाप्त कर चुकने के पीछे क्री सिकन्दर श्रपते येग्य गुर भरस्तू का अपने पिता की भरंति आदुर करता था, फेयल आदर ही नहीं वह पिता की भांति उससे श्रद्दा भो फरता था जै।र साफ साफ कहा करता था कि जन्मदाता दे फर पिता पूजनीय है ते जन्म सुधारक है।ने फे फारण शिक्षक फा सहल्व पिता से फस नहीं है । अरस्तू ने सिकन्द्र ছি नीति, न्याय, तत्व, ज्ञान, इत्यादि के मिवाय कुछ विशेष 'िशेष बातें ऐसी बतछाई थीं कि जे। शिवाय उन देने गुर चेले फे औैर किसी के मादछूम नहीं थीं । एक समय जब फि सिकन्द्र परशिया में था उसने सुना कि जरसूतू ने एक पुस्तक शिषो हि, ओर उमे इन शुप्त विपये। का लेस है ले कि भश्च तकत ठे सिवाय ओर किसी फे नही सालूम चे-इस पर उसने अश्सतू फो लिखा कि यदि आप “एक्रोमेटिफ जैगर इप्चे(प्टिक ( 2ए०7०७६५ घाव 179०0 ०) दिद्या का অন্ধ में प्रचार करेंगे तेश इसका परिणास क्च्छा नहीं दे।यर | इसफा उत्तर अरस्तू ने इस भफार से दिया कि में उस विद्या फा




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