महाभारत [विराट पर्व] | Mahabharat [Virat Parv]
श्रेणी : पौराणिक / Mythological, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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फ ऋषध्याथ] के भापाणुवाद्सद्दित छठ ( १४ )
পপ প্র পানা রী
| प्न दुष्टचारिणः } मे सन्नोएविदयो यै स राजधर्खात घसेत॥ १५॥
६| थे चायुशिष्यादाजानमपृस्छन्त फदाचन | तुर्ष्णी त्वेनपुपासोत् फाले
1 सभनिपूपेत् ५९६॥ ज्यत टि सानो सन्पानद्तवादिनः । तथैयं
१ चायमन्यन्ते मन्तिणं पादमं यूषा 0 १७॥ तेषं दरे कर्षत सेत
হ সাম रयपन । अन्तःपुरचस पे च व्रेष्ठि यानदितादर ये ॥ १८॥
¡ पिग्रितते घांसस््प फु्दीत फार्याणि छुलघून््पपि। एवं चिचरतो रानि न
4 दतिशयते फ्यचित् ॥ ६१० ॥ सच्छस्तवि पर्स শুলিমঘতুতী গালিখী-
॥| जितः | अतत्यन्ध र मन्येत गर्यादामजुचिस्तयन् ॥ २० ॥ न दि पुत्र
५ ने नतारं गे प्रात्तस्मरिन्दता। | समतिक्रास्तमर्यादं पूमयन्ति नरा-
1 धिपः ॥ २११ यक्षास्चोपचरेदेनमस्निवदेवघरिपद् । अचेनोपचीर्णो
१ हि हन्यादप न संशयः ॥ २२॥ यद्यज्धत्ताउयुंजीद तत्तदेचानुपघर्त्त येत् ।
॥ दै ॥ १४॥ जदोर चेठनेसे राज़ाफे दुए चिचार चा दत अपने ऊपर
३ बंका करें उस स्थान पर न यैदे, घी पुर्व साडभवनते सदसक
| ह ५६५ शाज्ञा फझिसी चात्म सम्मति गलयत मी किकी दिन
¶ एल कार्यको इस प्रकार करिये ऐला उनसे न फप्तो परग्तु छुप रहकर
| घडलरा रद्दित दो राजाकी सेघा करना ओर जय पराक्रम करनेका
$ समय जाये तब पराक्रम कर राजाफा घत्कार फरना॥ १द॥ राजा
| मिध्या बोल्द्गें घाले मनुप्यसे हंए करते हैं तेले दी अलत्प कहनेघाले
, ( आापल्टूस ) सन्त्रीका सो तिरस्कार करते एँ ॥१७)। चतुर सनुष्पका
1. फिसो दिन सो दाज्ाकी रानियोंके साथ লিছলা পছা হংল। আহি,
ई सधा ज्ो पुगप अन्तःपुर्ते रहनेबाले हो उनसे तथां राजा जिनसे
, शाशुना रखता दे तथा भी राज़ाके शध्र दो उनके साथ मिन्नता द
चरला 1१८ छोटेर कार्य सी राजाफो क्षताकर करतो इसप्रकार
। शाजाऊ सम्बन्धाँ चर्ताव कप्नेसे फिसी भकरार सी द्वानि नएीं होती
{ ह ५९९॥ राजा उत्तम दशाम दो तो भो पिना पूँछे अथवा चिना कहे
1 शज्ाकी मर्यादाका विचार फर के जन्सान्धको समानघर्वाधकरे अर्थात् (
1
স্পা 29
सशाके चिना करेन बोले और आलतस न देने पर बेटे नहीं फिन्तु
राज्ञाकी आपाकों बाट देख ॥ २०॥ अर्थात् शुभफो दमन फरने
| वाले राजा अपनी मर्यादाकों भन्न फरनेवाले पुत्र पोच अथधा जपने
1 आईफा भी माच नदी फरते है ॥२१॥ इस संसारमें यत्नके साथ
देखता और अग्निकी समान राजाकी सेचा करनो चाहिए परन्तु जो
चपट धारणा कर राजाकी सेवा फरता दे वद अवश्य ही भारा ज्ञाता
शनगडज्ष्ह्र्प्ज्क्ा कस कक का कक जज हक रूूऋ को ७ ६४:४5: कप उ चतर..
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