सियाराम शरण गुप्त | Shiyaram Sharan Gupt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्नु छ
उसमें मेरे पद्म भी छुपा करते थे, जिनमें से अधिकांश उनके कंटस्थ
दो जाते थे।
प्राइमरी पाठशाला की पढ़ाई पूरी करके आगे पढ़ने का सुयोग वे न पा सके।
कह नहीं सकता, इसमें हमारी अर्थरृच्छुता कितनी आड़े आई थी] उन दिलों
हमारे छोटे कक्का थे, पहले से ही घर का सारा भार उन्हीं पर था | वे ऐसी बाघा
से हार मांननेवाले न थे। तथापि यह ठीक है कि हमारी झाँसी की दुकान
का काम-काज बंद हो गया था। सियारामशरण की देखभाल करनेवाला कोई
विश्वासों जन वर्हा न था । हाईस्कूल में -उन>दिनों बोडिंग भी न था। होता
भी तो उसमे उनका स्वना सम्मानजनक न समा जाता । जिस स्वूल के बनने
में हमारे घर से श्राघक दान दिया गया था, उसमें उनका इस प्रकार रहना
कदाचित् दीनताचूचक सम्पा जाता । इसके पूर्व उत्त स्कूल में पढ़ने के लिए में
सर्गी मेजा गया था । परन्तु बहुत-प्ता घन नष्ठ कप्के कोरा-का-कोरा लौट आया
याश्रयवा लौय लिया गयाथा। इस भय से कि शरर की संग्रते में कहीं आगे
ओर भी न बिगड़ जाऊँ | खेल-कूद तक तो कुशलता थी। इस प्रकार,
सम्भव यही है कि परोक्ष रूप मे, में ही अपने अ्रनुज के शिक्षा-लाभ में
वाधक बना ।
घर की प्रतिप्ठा के अनुकूल व्यापर के साघन न रह जाने से हम सभी
माई प्रायः बैठे ठले थे। सियारामशरण साहित्य-सइन की कुछ लिखा-पढ़ी करने
लगे | ठाकुर जी की पूजा का भार भी उन्हों पर झा गया | दम लोगों को पान
खिलाना भी उनका काम था | इसे अ्वस्थ होने पर भी वे आग्रहपूर्वक बहुत दिनों
तक करते रहे ।
साहित्य की ओर पहले से द्वी उनकी प्रद्मत्त थी | साहिद-सलदन का काम भी
कितना था। सुतरामम् रचना के लिए समय का अ्रमांव उन्हें न था। परन्तु जैसा
उन्होंने वाल्य-स्ट्वति में लिखा है, अपनी पद्म-स्वना लेकर वे सीधे मेरे निकट नहीं
आये। फिर भी यह एक ऐसी मिठाई थी जो अक्रेले-अकरेले नहीं खाई जा सकती थी ।
यही नहीं दूसरों को खिलाकर ही इसमें तृप्ति मिल सकतो थी। परन्तु भय-संकोच
भी थोड़ा न था। मब्यकाल में हमारे संगीत श्रोर साहित्य की जो2ंद्शा हो गई
थी उसे देखते हुए लोग कला की कितनी हो प्रशंसा क्यों न करें, कलाकारों के
प्रति उनकी वैषा आस्था नहों रह गई थी। जित पथ में चरित्र के पतन की
आशंकः! हो उसमें कीन गहस्थ अपने घर के लड़के का जाना ठीक समझेगा | स्वयं
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