पूज्य गणेशाचार्य जीवन चरित | Pujya Ganeshsacharya Jeevan Charit

Pujya Ganeshsacharya Jeevan Charit by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के -कहे-जा सकते: हैं. और-उतका उल्लेख अन्तिम -तीथंकर के:. अ्रन्तिस समय- में बिन पूछे होना :तीर्थकरों के आशय की अभिव्यक्ति-भलीभांति स्पष्ट हो जाती है-वह--यह है कि निग्नन्थश्रमणसंस्क्ृति में शुद्ध ग्राचार-विचार को महत्त्व दिया गया है, 'न. कि संख्या. को और न आचार-विचा र-शून्य संगठन को । मानो इसी ˆ बात ,का द्योतन-करने के लिए गर्ग नाम के आचार्य का वर्णन जिना किसी के :प्रइन पर: उल्लेख किया गया है । | | ऐसे ती यह वात मंगलंपाठ के शब्दों से भी भलीभांति व्यक्त हो जाती है | जैसे कि अंरिहंतसरणं प्रवज्जामि, सिद्ध सरणं पंवज्जामि; साहू सरणं पवज्जामि, केवली `पन्नतं. घम्भं सरणः पवज्जामि प्र्थात्‌ अरिः हंत सिद्ध, साघु ्रौरधमकी शरणः बता्द्‌ गई है, न कि-संगठन की. शरण | - यदि निग्रन्थ-श्रमणसंस्कृति में ्राचार-विचार-बुन्यं . संगठनको हीः महत्व दिया होता तो “संघं शरणं गच्छामि इस तरह ` करा पाठ , जंसा वौद्धग्रन्थोमे.है, वेसा इस मंगलपाठ में भी प्रयोग होता । लेक्रिन वीतराग परम्परा मे श्राचार-विचार-सम्पन्न संघ, संगठन एवं साधु-संस्था को महत्त्व.दिया गया है। यह बात गर्गाचाय के. चरिता- नुवाद वर्णन से सुस्पष्ट है । । , उक्त संकेत से पाठ्कगण सहज ही यह्‌ सम 'पार्येगेःकि ग्गचिायं के चरित्र के साथ प्राचार्य श्री गंणेशलालजीं म. सा. की चंरित्र- कितना साम्य रखता है | एक दृष्टि से-देखां जाये तो करई वातं प्रधिक 'विशिष्टता रखती हैं। अनुमानतं: गर्गाचार्यजी ने जितने मुनियों का त्याग किया उससे भी अधिंक संख्या की छोड़ने का . असंग चरित्रनायक को आया है। उन्होंने शायद सर्वत श्रव॑स्थां में यह कार्य किया होगा लेकिन चरित्रनायक ने तो रोगाक्रांत अवस्था में भी इस- प्रकार की शांत क्रान्ति का गंभीर समाधि भावना के साथं कदम उठाया । जहां रोगाक्रान्त स्थिति में मानवं म्रपने संयम का भी ` ध्यान नहीं रखं पात्ता वहां श्राचाये श्री गणेलालजी म. सा. ने वद्धा- वस्था और डाक्टरों को' भी श्राइचर्य में डालने वोले भयंकर रोग का प्रादुभवि कूप श्रसातावेदनीयमे भी शरीर के ध्यान को छोड़ कर संयम- का पूरा ध्यान रंखते हुए सारे समाज के सम्मांन: को पीठ पीछे रखकर अ्रपमान के कंटीलेःमार्ग कोः सामने रखते हुए अनंत- तीर्थकरों की-परम्परा कोः सुरक्षित र्खनेःवाली निर्ग्रन्थ श्रमेणसंस्क्ृति के सं रक्ष- [ ड




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