पूज्य गणेशाचार्य जीवन चरित | Pujya Ganeshsacharya Jeevan Charit
श्रेणी : जीवनी / Biography, जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
552
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के -कहे-जा सकते: हैं. और-उतका उल्लेख अन्तिम -तीथंकर के:. अ्रन्तिस
समय- में बिन पूछे होना :तीर्थकरों के आशय की अभिव्यक्ति-भलीभांति
स्पष्ट हो जाती है-वह--यह है कि निग्नन्थश्रमणसंस्क्ृति में शुद्ध
ग्राचार-विचार को महत्त्व दिया गया है, 'न. कि संख्या. को और न
आचार-विचा र-शून्य संगठन को । मानो इसी ˆ बात ,का द्योतन-करने
के लिए गर्ग नाम के आचार्य का वर्णन जिना किसी के :प्रइन पर:
उल्लेख किया गया है । |
| ऐसे ती यह वात मंगलंपाठ के शब्दों से भी भलीभांति व्यक्त
हो जाती है | जैसे कि अंरिहंतसरणं प्रवज्जामि, सिद्ध सरणं पंवज्जामि;
साहू सरणं पवज्जामि, केवली `पन्नतं. घम्भं सरणः पवज्जामि प्र्थात् अरिः
हंत सिद्ध, साघु ्रौरधमकी शरणः बता्द् गई है, न कि-संगठन की. शरण |
- यदि निग्रन्थ-श्रमणसंस्कृति में ्राचार-विचार-बुन्यं . संगठनको
हीः महत्व दिया होता तो “संघं शरणं गच्छामि इस तरह ` करा पाठ
, जंसा वौद्धग्रन्थोमे.है, वेसा इस मंगलपाठ में भी प्रयोग होता ।
लेक्रिन वीतराग परम्परा मे श्राचार-विचार-सम्पन्न संघ, संगठन एवं
साधु-संस्था को महत्त्व.दिया गया है। यह बात गर्गाचाय के. चरिता-
नुवाद वर्णन से सुस्पष्ट है । ।
, उक्त संकेत से पाठ्कगण सहज ही यह् सम 'पार्येगेःकि
ग्गचिायं के चरित्र के साथ प्राचार्य श्री गंणेशलालजीं म. सा. की
चंरित्र- कितना साम्य रखता है | एक दृष्टि से-देखां जाये तो करई
वातं प्रधिक 'विशिष्टता रखती हैं। अनुमानतं: गर्गाचार्यजी ने जितने
मुनियों का त्याग किया उससे भी अधिंक संख्या की छोड़ने का
. असंग चरित्रनायक को आया है। उन्होंने शायद सर्वत श्रव॑स्थां
में यह कार्य किया होगा लेकिन चरित्रनायक ने तो रोगाक्रांत अवस्था
में भी इस- प्रकार की शांत क्रान्ति का गंभीर समाधि भावना के साथं
कदम उठाया । जहां रोगाक्रान्त स्थिति में मानवं म्रपने संयम का भी
` ध्यान नहीं रखं पात्ता वहां श्राचाये श्री गणेलालजी म. सा. ने वद्धा-
वस्था और डाक्टरों को' भी श्राइचर्य में डालने वोले भयंकर रोग का
प्रादुभवि कूप श्रसातावेदनीयमे भी शरीर के ध्यान को छोड़ कर
संयम- का पूरा ध्यान रंखते हुए सारे समाज के सम्मांन: को पीठ पीछे
रखकर अ्रपमान के कंटीलेःमार्ग कोः सामने रखते हुए अनंत- तीर्थकरों
की-परम्परा कोः सुरक्षित र्खनेःवाली निर्ग्रन्थ श्रमेणसंस्क्ृति के सं रक्ष-
[ ड
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