एक आलोचनात्मक दृष्टि | Ek Aalochnatmak Drishti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
80
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कान्य की उपेक्षिता
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यरोधरा
जगत् केः समत्र मानव क लिए ख्याति प्रात करना संभव नहीं
है। यह भी संभव नहीं कि संसार के सभी यशस्वी पुरुषों और भुवन-
प्रिख्यात मदिलाओं के निकटतम सम्बन्धी भी उन्हीं से हों। प्रायः
यह भी देखा जाता द कि कर्तव्य के पालन में तथा शुभ करे द्वारा
यश के पिलार में सभी को सुअबसर भी एक सा नहीं मिलता | ऐसी
स्थिति में राम के समकालीन कबि बाल्मीके ने यदि लच्मण ओर
उर्मिला के चरित्रों का पूर्णरूपेण अंकन नहीं किया, तो इसमें श्राश्चर्य
ओर मवीन कल्पना की आवश्यकता ही क्या ? मदाकवि अ्रश्वधोष
ने गोपा या यशोधरा के चरित्र पर उचित प्रकाश न डाला, तो इसमें
छानबीन की कोई गुंजाइश नहीं ।
कतिपय विवेचक कदा करते ह कि श्राज भी जगत् मे मुसोलिनी
से वीर, बनं्टसा सा साहित्यिक, “एँस्टिन सा वैशानिक, रवीन्द्र सा
कवीन्द्र--सैकट़ों पुरुष रक्त वत्तमान हैं जिनकी स्त्रियों और बच्चों के
के विपय में जगत् अंधकार ही में पड़ा है। आधुनिक सामाजिक
पमेरणाओं अथवा गतानुगतिको लोकः भेड़ियाघसान पद्धति से प्रेरित
होकर जो कुशल कवि और लेखक उर्मिला, यशोधरा, चिर््ांगदा
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