राज्य विज्ञान परिचय | Rajya Vigyan Parichaya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
415
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
विज्ञन अ्रवश्यम्मावी, अमर एवं अपरिवर्ततशील कानूनों का अध्ययन
नहीं है जैसा कि कुछ लेखक श्रम में पड़कर कहते हैं। वास्तव में विशान
से हमारा तात्पर्य उस संकलित ज्ञान से हैः जो कि विधिपूर्वक देखने एवं
प्रयोग करने से प्राप्त किया हो जिसके परिणामस्वरूप कुछ कानून एवं
सिद्धान्त निकाले जा सके | इस प्रकार विजशञान एक मावुक अध्ययन विधि
न होकर तककंयुक्त अ्रध्ययन है । किसी विषय के वैज्ञानिक अध्ययन का तात्पय
यह है कि हम उसके विषयवस्त॒ एवं तथ्यों का तर्क के आधार पर तथा
निष्पक्ष एवं उदार हृदय से विश्लेषण करें।
विज्ञान शब्द की इस परिमाषा के अचुसार राजनीति शास्त्र एक विज्ञान
ही कहा जायगा राजनीति शास्त म विचारक ने राजनीतिक संस्थाश्रों के
-भूतकालीन इतिहास एवं संगठन से तथा राज्यों का वर्तमान स्वरूप जैसा है
उसका अध्ययन करके बहुत से सत्य एकत्रित कर लिए हैं । उन्होने इन स्यौ
का वर्गीकरण, समन्वय एवं सुन्दरता से संयोजन कर दिया है जिससे कि
इस विश्लेषण से कुछ निश्चित आधारभूत सिद्धान्तों पर पहुँचा जा सके |
इस प्रकार वे कुछ ऐसे सिद्धान्तों को निकाल सकने में समथ हुए हैं जो कि
मनुष्य समाज का नियंत्रण करते हैं ओर जो कि प्रायः सब जगह एक से ही
हैं, हाँ कहीं-कहीं थोड़ा अन्तर अवश्य आ गया है| राज्य-जीवन की कठिन
समस्यात्रों को सुलझाने के लिए इन कानूनों एवं सिद्धान्तों का उपयोग किया
जा सक्ता है |
लेकिन फिर भी हमें यह वात ध्यान में रखनी चाहिए ।कि राजनीति-
शास्त्र भौतिक शास्त्र तथा रसायन शास्त्र के समान शुद्ध प्राकृतिक विज्ञान
। नहीं है । प्राकृतिक विक्ानो ८ 11981081 ८1८९8 ) के कुद,
निश्चित एवं सही निष्कर्ष निकलते हैं क्योंकि उनका सम्बन्ध निर्जीब पदाथों
से है । परन्तु राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध जीवधारियों से है जिनकी प्रकृति
एवं प्रद्ृत्तियाँ मिन्न-मिन्न होती हैं । - रस्त मनुष्य के कार्यों के बारे में कोई
निश्चयात्मकता नहीं हो सकती । जब कि हमारी सामग्री मे मिन्न-मिन्न तथ्य हैँ
तो निष्कष मिन्न-मिन्न होंगे ही | इसके अतिरिक्त राजनीति शास्त्र के अशुद्ध
User Reviews
No Reviews | Add Yours...