कफ परीक्षा | Kaph Pariksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
81
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रमेशचंद्र वर्मा - Rameshchandra Varma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रभम अन्या छ
जो कि अधिकतर कभी कभी हृदय में (ल्ग) सेहो
जाता हैं। कृष्णवर्ण और भूरि इलेष्मा कोयलों के खानों में
कायं करनेवाले व्यक्तियों में पाया जाता है । इनके अलावा उनमें भी
मिल सकता है जो कि धूम्रपान करते समय उसघूत्रको अन्तः
शोषितं कर लिया करते हैं, या जिनके इस प्रकारका स्वभाव
हो गया हो ।
इलेष्मा की घनता
दलेष्मा मं उपस्थित रहनेवाले पदार्थो के कारण निम्न वर्गी-
करण क्रिया गया हुं । १-तरल इकेष्मा (शीरस) २-सप्य इलेष्मा-
(म्रलेन्ट) ३-तरलपुय युक्त इलेष्मा (सीरोप्रलेन्ट) ४-सपूय घन
इलेष्मा (म्यीको प्रधूलेन्ट ) ।
तरल इलेष्मा
यह इलेष्मा इलेष्मीय स्तर रहित होता हैँ इसमें इलेष्मिक
धातुओं के सूत्र नहीं पाये जाते ह, यह पतला ओर जल सदृक्ष रक्त
रंजित होता हैं । इससे फुप्फुसीय शोथ का निर्देश होता हैँ इसी
रोग में कभी कभी शोणित वर्ण इल्ेष्मा न होकर साबून के सदृश
इवेत वर्ण का इलेष्मा पाया जाता हैं ।
इलेष्मसूत्र सहित कफ
जिस कफ में अधिकाय में इलेष्मिक कलायें विद्यमान हों
तो नृतनकास समझना चाहिये यह देखने में स्वच्छ, कठिन तथा
चिपका हुआ होता है। रोग की दृष्टि से कफ़ की मात्रा अधिक
नहीं पाई जाती जब यही कास जीर्ण स्वरूप का हो जाता है तब
कफ में पूयकोषाणु भी मिश्रित रहा करते हैं, इस अवस्था का कफ
पूवे कथित अवस्था से कुछ कम ठोस भौर अधिक घन होता हैँ भर
उसका रंग हरित पीत द्वोता हूँ। इस प्रकार के कफ को अपक्व
User Reviews
No Reviews | Add Yours...