तांत्रिक वाङमय में शक्तिदृष्टि | Tantrik Vadamya Mein Shaktidrishti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना (१) प्राचीन समय से ही दार्शनिक भिन्न-भिन्न दर्शनों का आलोचन करते आ : रहे हैं । यह आलोचन प्रायः मत-मतान्तरों के खण्डन-मण्डन के आकार मैं प्रकाशित . हुआ है। बुद्धदेव तथा महावीर के. समय से इस प्रकार के आलोचनों का विवरण ' थोड़ा बहुत मिलता है । विभिन्न समयों में प्रवर्तित आलोचनों का क्रमबद्ध इतिहास अभी तक संकलित महीं हुआ । भारतीय चिग्ताधारा के पूर्ण इतिहास की रप्वना के समय इन सब आलोचनों से विभिन्न चिन्ताधाराएं तो दूर रहीं, प्रत्येक चिन्ताधारा में भी भावुक के सम्मुख विभिन्न प्रकार की दृष्टिमज्ञियाँ दीख पड़ेंगी । एक दृष्टिमड़ी को माननेवाले के निकट दूसरी भड़ियाँ प्रावादुक की दृष्टि अथवा मिथ्या दृष्टि के. . रूप में उपेक्षित या अनादत होने पर भी निरपेक्ष ऐतिहासिक के लिए. उपेध्सित होने . योग्य नहीं हैं। इस अनुथ्वित उपेक्षा के प्रभाव से ही बहुत-सी दृष्टिमड्नियों का परिचय रत . छुस हो गया है, जो अब मिल नहीं रहा है । किंसी-किसी दृष्टिमज्नी का तो साधारण परिचय भी उपलब्ध नहीं है । उदाहरण के रूप में चाक्त दृष्टि की बात कही जा सकती है । घ्रड्दर्चनसमुच्चय आदि ग्रन्थों में, यहातक कि सबददानसंग्रह के सरुददद्य बृहत्‌ तथा. प्रामाणिक ग्रन्थ में . भी, इस प्रकार की उपेक्षा का प्रभाव दृष्टिगोचर होटा है | उस समय दाक्त दृष्टि प्रति- पादक ग्रन्थ या साधन-परम्परा थी नहीं, ऐसा नहीं कहा जा सकता | उस समय प्राचीन दाक्त-साहित्य का अधिकांश लुप्त हो जाने पर भी विशाल साहित्य विद्यमान था, परन्तु उसके सम्यकू प्रचार तथा पठन-पाठन का सौक्य न रहने के कारण दशाक्त-दृष्टि के साथ विद्वत्समाज में भी अधिकांदा लोगों का घनिष्ट परश्चिय नहीं था । वस्तुत, इसीलिए, वृत्तमान युग में. भी भारतीय दद्दन तथा चिन्तन के इतिहासविषयक ग्रन्थों में यह अभाव समान रूप में ही लक्षित होता है । परन्तु आशा है, भविष्य में इस अभाव की निदृत्ति हो जायगी | प्रस्तुत निबन्धावली में इसी उद्देव्य से सर्वसाधारण के अविदित इस दाक्त दृष्टिकोण के कतिपय प्रसिद्ध दार्शनिक तथ्यों पर प्रकाश डालने की चेषटा वी गई है | यह दृष्टिमज़ी तान्त्रिकि साहित्य का एक वैदिष््थ है, इसमें सन्देह नहीं । इस प्रसंग में तान्त्रिक साहित्य शब्द से शाक्त और दौव आगम तथा तन्मूलक श्रन्थ समझना चाहिए | यद्यपि बैष्णवागमों में भी शाक्त दृष्टि है और उागमिक संस्कृति को साधारण पृष्ठभूमि का प्रकाश उसमें भी रक्षित होता है, तर्थाप उसकी आलोचना प्रथक्‌ रूप से द्ोनी चाहिए, यह समझकर इसमें उसे स्थान नहीं दिया गया । ख..




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