मारवाड़ से मुगलों के सम्बन्ध | Marwar Se Muglon Ke Sambandh
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सल्तनत युग में मारवाडु का उत्थान और विकास ७
१५ वही पृ. २३ (अ), चैचसो जि. २५- १३१५ जोधपुर ख्यात जि. १ १, ४६ और बीर बिनोइ
+ पु, ४०६
# मभाण्डौर से ६ मील दक्षिण मे एक पहाड़ी के ऊपर शतिवार, १२ मई १४४६ के दिल
जोधपुर के दुर्ग का शिलान्यास किया गया था । इस पहाड़ी की तलहेटी में आधुनिक जोधपुर
7 शहर बसा हुआ है। इम्पीरियल गजैटियर के वर्णन से इस कथन फी पुष्टि होती है. 'जोधपुर
दुगं राजपुतान भँ सर्वाधिक सुन्दर दुगं दै, यद समस्त शहर कौ रमा करवा है। एक पृथक्
पहाड़ी पर पृष्व के धरादल से ४०० पुट कौ उचाई षर दुं स्थित है ) वारो नैरफ़ समतनं
भूमि हैं | अतएव दूर वे ही यह मानवीय दृष्टि को आकऊृषित कर लेता है।” इम्पीरियल
गजैडियर व् १६७
१६ गोयूण्डी शिलालेख जनरल आफ एशिवाटिक सोस्ताइटी आफ बगाल को जि. ५६ भाग एक
और दो में १८८६७ ईसवी में प्रकाशित किया गया था।
१७ वही ¶, २५ (व) द्यालदाम ख्यात जि. 1 पृ, १८३, जोधपुर छ्यात जि. १ पृ. ४६. कयाम
था रासा पृ, ३० और ओझा जि. १ पृ, २४२५६
रुतनगढ़ से मेइता जाने वाली उत्तरी रेलवे के छापर रेलवे स्टेशन से ४ मील पूर्व मे
छापर-ड्रोणपुर स्थित है । राणा कुम्भा ने १४५५ ईसवो में नायोर पर अपता अधिकार कर
लिया थां। इस समय नागोर की गद्दी के लिए दो प्रतिट्नन्द्रियों मे सघं चल रहा था। एक
पक्ष को गुजरात के सुलतान ने सहायता दी / परिणामस्वरूप १४५७ ईसबी में नागौर कुम्भा
के हाथ से निकल गया। कुम्मा के जीवन का यह सकटमय समय था। वह गुजरात और
मालवा कै मुस्लिम सुल्तानों को सपुक्त सेनाओ के विरुद्ध युद्ध करने में व्यस्त था गतएव
जधा में परिस्थितियों से सा उठा कर मागौर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया
होगा । लेकिन यह स्वल्मकालोन अधिकार था। निजामुद्दीव अहमद और फ़रिश्ता लिखते हैं
क्रि सिकन्दर सोदी के णासन काल मे नागौरङे मुस्लिम शासरू मोहम्मद छां ने १५०६ हसी
में दिल्ली के लोदी सुल्तान की अधौनता स्वीकार की थी |
कुम्मा को नागोर विजय का उल्लेख कीति स्तम्भ शिनालेख में है जिसे भोझाजी मे
उदयपुर राज्य के इद्विहास जि में और शारदाजो ने “महाराणा कुम्भा” में वर्णन किया
है। कविराजा श्यामतदास मे भी इसे वीर विनाद में उद्ध,त किया है ॥ निजामुद्दीद अहमद
का ग्रन्थ तबकात-ए-अकवरो' जिसका यो एन डे ने अग्रेजो में अनुवाद किया है लेकित
अस्तुत ग्रन्थ के लेखक ने तदकात का फारसो सस्करण देखा है जो नवलकिशोर प्रेस से
प्रकाशित हुआ था । फ़रिश्ठा के ग्रन्थ का ब्रिस्स महोदय अग्रेजों में » निदो मे अनुवाद
कर चुक॑ हैं। अग्रंजी अनुवाद की श्रथम जिल्द के पृ, ५६३ और तवकात के पृ. ३३१ पर
मोहम्मद झा के समपंण का उल्लेख है ।
१८. टो पेनस्स खाक मेवाड पृ. ४०, द्रुक््स, हिस्ट्री आफ़ मेवाड़ पृ. १२ और ओझा, जोधपुर
राज्य का इतिहास जि. १ पृ. २४३ इसको पुष्टि “जयमल वश प्रकाश” पृ, ६२ से भी
होती है ।
३६. वही पृ २४ (अ), कविराजा ध्ात जि.२ प. ४४ जयमन वश प्रकाश पृ, ६० चतुरकुल
चरित्र पृ. १६ दाद जि, २ ष्. ९५०
३०. रेक मारवाड का इतिहास जि. १ प् १०२
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