शास्त्रार्थ पानीपत भाग 2 | Shastrartha Panipat Bhag 2

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Shastrartha Panipat Bhag 2  by विदुषी चम्पावती जैन - Vidushi Champawati Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^ जेनसमाज फा-पत्र' नं० १ प्रकार की हैं कि इनमें शब्द, अथे,' खंवन्‍्ध, पद-ओर अत्तरी/का जो कम वर्चमान “है उसी प्रकार का क्रम लव दिन बना रहती दै? (ऋगेदादिं भाष्य भूमिका लफा:रं८) | शब्द्‌ रूप आंगम के साक्षात्‌ भतिपादन का दुखरा आश्रय न होने से यदह चात. विरुद्ध भी नहीं क्योंकि जैन तो्थंडरों के अतिरिक्त ऐला कोई नदीं जिससे किःदस बात की सम्भावना हो । आर्य॑लमाज के परमात्मा कै अतिरिक्त तो किसी भी धमं धवतेकः को आर्य- समाज ने .शब्दात्मक आगम का साक्तात्‌ प्रतिपादक माना नहीं है, अतः उनमें तो यह देतु जातः नदीं है । यव र्द जातो हे आयसमाज के परमात्मा की वात ल्ली उलमे मी यह साधन नहीं जाता, क्योकि आर्यसमाज का परमात्मा अश्वसेसे ओर सर्यव्यापक है 1 अतः उससे शब्द सुप आगम का. धत्तिपादन नरी दो खकता । शब्द्‌ .जन्य है यह बात आ्यंसमाज के निम्न- लिखित. मान्य शास्त्रों से प्रमाणित है: | ( १) सतोलिझ्ञाभावात्‌ २--१--२६ बे० दर्शन । नित्य वैधस्यीत्‌ २--२--२७ चैं० दृर्शन । अनित्यश्यायं कारणतः २--२--२८ थै० दशन । न था सिद्ध विकारात्‌ २--१--२९ दै दुन 1 अभिव्यक्तौ दोषात्‌ २-२-३० वै० द्रन । अथीत्‌ शब्दं अनित्य है अन्तराल ले->नाश और उत्पत्ति: के बीच में उरूकी मौजूदगी.को घतलाने वाले साधंन के अभाव होने से, शब्द अनित्य है नित्य.ले उलटा होने से; शब्द अनित्य है फारण:-वाला होने से। शब्द का अनित्यत्व अखिद्ध नहीं उसमें




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