आचार्य रामचंद्र शुक्ल निबंध यात्रा | Aachary Ramchandra Shukal Nibandh Yatra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी निवध : उद्भव और विकास 13
दाक्ति है। गहन विचार-वीधियो के बीच-बीच उनके निबधों मे सरस भाव-ख्रोत
स्थान-स्थान पर परिलक्षित होते हैं। शुक्ल जी के मनोमावो-सम्बन्धी निवघ
उनके सर्वेश्षेष्ठ मिवन्ध है। साहित्यिक उद्देश्य वे साथ-साथ उनके निबधी मे
सामाजिक उद्देश्य भी निहित रहता है। सारगभित व्यजना-प्रधान विवेचनात्मक
समासश्ैली शुक्ल जी की अद्मृत देन है । उनवे सूत्ररूप में धनीभूत বাদী की
ध्वनि दूर तक जाती दै, जैसे वैर कोच का आचार य मुख्वा है', 'भकित घ॒र्मं वी
रसात्मक अनुभूति है” आदि 1 निस्सदेह शुक्ल जी हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ विचारात्मक
निवधकार है।
शुक्लोत्तर निबन्धकार--शुक्ल जो को हो परम्परा में वर्तमान युग के
विचारारमक निववकारों में आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी, डा० नगेन्द्र, डा०
हजारीप्रमाद द्विवेदी, वाद गुलावराय, श्री इलाचन्द्र जोदौ, डा० देवराज, श्री
भज्ञैय आदि उल्लेखनीय है। इनकी साहित्यिक चेतना खूब बढ़ी-चढी है। इन्होंने
अनेक आलोचनात्मक विपयो पर निबघ लिखे है।
आलोचनात्मक साहित्यिक विषयो पर लिखने वालो में श्री गगाप्रसाद पाडेय,
शान्तिप्रिय द्विवेदी आदि कुछ लेखक ऐसे हैं जिनते निववों मे छायावादी शैली
वी व्यक्तिगत विशेषता पाई जाती है । इनके आलोचनात्मकं निबधोमे इनके
व्यतिनत्व तथा भावुता वौ भाभा स्पष्टं फलक्ती है ओ स्वच्छन्दतः भौर
मवेदनशीलता निवधक्रार वे लिए अपेक्षित है, वह उनमे पूर्णत. पाई जाती दै ।
हिन्दी निबध साहित्य के विकास मे छायावाद वे चारो स्तम्भो--पन््त,
निराला, प्रसाद और महादेवी का भी योगदान है । निराला के स्वच्छन्द विद्रोही
व्यक्तित्व का परिचय उनके कुछ निबधी में मिलता है। 'गद्यपथा सम्रह तथा
पुस्तवो बी भूमिकाओं आदि के रूप मे पत जी वे, 'काव्यकला तथा अन्य मिब्धा
मे प्रसाद जी वे तथा भूमिवाओ और “क्षणदा' सप्रह मे महादेवी के आलोचनात्मक
निबंध सकतलित हैं ।
भी जेनेन्द्र कुमार ने धाकार के अतिरिक्त निवधकार वे रूप मे भी अपनी
अपूर्वे प्रतिभा का परिचय दिया है। विविध प्रकार की सामाजिक, साहित्यिक
समस्याओं नथा अन्य विचारात्मक विपग्रो पर आपने सुन्दर विचारात्मक विवघ
लिखे हैं। दाशंनिक गरभीरता इनमें खूब है। जैनेन्द्र जी वी शल्री भी पर्याप्त
रोचक है।
दा निक, पुरातत्त्व, सास्कृतिक और आध्यात्मिक विषयो पर लिखने बालों
भे जनेन जी के अतिरिक्त थी वासुदेवशरण श्रग्रवाल, सत्यवेतु विद्यालबा२,
डा० बलदेव उपाध्याय आदि और भी कई लेसक उल्लेखनीय हैं । इनकी अनुस घा-
नाप्त्मक प्रतिभा ओर विद्वत्ता इनके निवधो मे स्पष्ट भलक्तो है।
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