सुखदास | Sukhdas
श्रेणी : भाषा / Language
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
67
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[१२ सुलदास
न यह जानता हूँ कि रुपये किसने लिये। तुम मेरी और मेरे-घर की तलाशी
लेलो। तुम्हें वहाँ केवल १०) रखे हुए मिलेंगे जो मैंने बचाकर रख
छोड़े हें। वे वहाँ ६ महीने से रखे हुए हैं और यद्द बात गोपाल भी
जानता है।!
गोपाल यह सुनकर भुनभुनाने लगा, जिसका आशय यह था कि में किसी
कै घर का हाल क्या जानू | पर पुजारीजी ने ज़ोर देकर कह्य--सुक्खू !
मेरे पास पूरा प्रमाण है। रुपया गत रात को लोप हो गयां | रात को तुम ही
महन्तजी के पास थे। गोपाल वहाँ अस्वस्थ हो जाने; के कारण नहीं गया। इसे
तुम भी स्वीकार करते हो | श्रब तुम्दीं बताओ किस पर सन्देह किया जाय !
..._ सुखदास--सम्भव है मैं सो गया हूँ, या मुझे मुखा श्रा गई होगी जैसा
कि तुम देख चुके हो। कदाचित् उसी समय कोई चोर आर गया होगा ।
मैं निर्दोष हूँ, तुम श्रभी चलकर मेरे घर की तलाशी ले लो, क्योंकि श्रमी
तक में घर से कहीं गया भी नहीं ।
निदान सुखदास के घर की तलाशी ली गई ओर गोपाल ने महन्तजी की
खोली थेली सुखदास के दरवाजे के पीछे टेंगी हुई पाई। उसने कहा-
मित्र रन स्वीकार कर लो, भूठ बोलने से क्या लाम !
বাহন गोपाल की ओर तुच्छु दृष्टि से देखकर कहा--'तुम मुझे नो
धर्षों से जानते हो। तुमने मुझे कभी भूठ बोलते देखा है ! में भूठ से
धुला करता हूँ । ईश्वर मुझे श्रवश्य निर्दोष सिद्ध करेंगे |
गोपाल - मुझे क्या ख़बर कि तुम अपने मन में क्या-क्या गुप्त संकल्प
करते हो श्रौर उसमें पिशाच को स्थान देते हो |
यह बात सुनकर सुखदास का चेहरा तमतमा गया । वई कुछ कहने ही
को थाकि किसी श्रान्तरिक दुःख के कारण रुक गया। उसके चेहरे का
रंग उड़ गया और द्वोंठ काँपने लगे। श्रन्त में उसने गोपाल की ओर .देख-
कर कहा--श्रव मुझे याद आ रहा 'है कि जब में महन्तजी के पास गया तो
मरेजैब में चाकू नहीं था ।
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