दो बहनें और अन्य कहानियाँ | Do Behane Aur Anya Kahaniyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्यासों से परिचय प्राप्त कर लिया। उनक
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ दो बहनें
इस वक्त भाड़न लिये कुरसियाँ और तिपाइयाँ साफ कर रही थी कि गुरुसेवक
ने अंदर पहुँचकर सल्लाम किया | रुपकुमारी दिल में कट गयी । उमानाय पर
ऐसा क्रोध आया कि उनका मुँह नोच के । इन्हें लाकर यहाँ क्यों खड़ा कर
दिया ? न कहना, न सुनना, बस बुला लाये। उसे इस दशा में देखकर गशुरु-
सेवक दिल मेँ क्या कहता होगा। मगर इन्हें अक्ल श्रायी ही कन्च थी। वह
अपना परदा ढाँकती फिरती है श्लोर आप उसे खोलते फिरते हैं। जरा भी
लज्जा नहीं। जेसे बेहयाई का बाना पहन लिया है। बरब्रस उसका अपमान
करते हैं | न-जाने उसने उनका क्या बिगाड़ा है ।
आशीवांद देकर कुशल-समाचार पूछा और कुरसी रख दी | गुरुसेवक ने
बैठते हुए कद्ा--आजन भाई साइब ने मेरी दावत की है; में उनकी दावत पर
तो न आता, लेकिन जब उन्होंने कहा, तुम्हारी भाभी का कड़ा तकाजा है, तब
मुझे समय निकलना पड़ा |
रू4कुमारी ने बात बनाई घर का कलह पाना पड़ा--वरुमसे उस दिन
कुछ बातचीत न हो पायी । जी लगा हुआ था ।
गुरुसेवक ने कमरे के चारों तरफ नजर दोड़ाकर कहा-इस पिंजड़े में तो
आप लोगों को बड़ी तकलीफ होगी |
रूपकुमारी को ज्ञात दुआ, यह युवक कितना सुब्चिद्दीन, कितना अरसिक
है। दूसरों के मनोभावों का आदर करना जेसे जानता ही नहीं । इसे इतनी-सी
बात भी नहीं मालूम कि दुनिया में सभी भाग्यशाली नहीं होते | लाखों में एक
ही कहीं ऐसा भाग्यवान् निकज्ञता है। ओर उसे भाग्यवान् ही क्यों का जाय !
जहाँ बहुतों को दाना न मयस्सर हो, वहाँ थोड़े-से आदमियों के भोग-विलास में
कौन-सा सोभाग्य ! जह बहुत-ते श्रादमी भूखो मर रहे ह, वयँ दो-चार श्रादमी
मोहनभोग उड़ावे, तो यह उनकी बेहयाई और द्वृदयहीनता है, सोमा
कभी नहीं ।
कुछ विढ़कर बोली-पिंजड़े में कठपरे में रहने से अ्रच्छा हे | पिंजड़े में
निरीह पक्षी रहते हैँ, कठघरा तो घातक जन्तुओं का ही निव्रासस्थान है ।
गुरुसेवक शायद यहद्द संकैत न समझ सका, बोल।--मेरा तो इस घर में दम
झट जाय। में आपके लिए, अपने घर के पास ही एक मकान ठीक कर वपा | खूब
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