भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय | Bhagvat Prapti Ke Vividh Upaya

Book Image : भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय  - Bhagvat Prapti Ke Vividh Upaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सात उपाय १७ कोई भी शत्रु नहीं है; शील ही जिनका भूषण है; जो मुञ्च भगवान अनन्य ओर दद्भावते भक्ति करते हः जिन्हने मेरे स्वि समसत कमो ओर सखजन-वान्धर्षोके ममत्वको भी त्याग दिया है; जो मेरे ही आश्रित हैं, मेरी कथाकों मधुर समझनेवाले ६, नित्य मेरी ही कया कहते-सुनते हैं, ऐसे मुझमें छंगे हुए चित्तवाले वे साधु त्रिविध तापोंसे पीड़ित नहीं होते । ये समस्त आसक्तियोंसे रहित होते हैं। वे ही आसक्तिके दोषका नाश कर सकते हैं । अतएव; हे साध्वि ! उन्हींका सक्ग करना चाहिये । इसलिये हजार काम छोड़कर भी रुदा प्रेमसे और भ्रद्धासे सत्सज्ञ करना चाहिये | २ भनन-गोसाईजी महाराज कहते हैं--- वारि मथे वरु होइ घृत सिकताते वरु तेल । विनुदरि-भञज्ञन न भव तरदिं यह सिद्धान्त अपेल ॥ बात भी ठीक है | संसारसे तरनेके लिये मगवात- का भजन ही मुख्य है । भजनके पीछे सारे गुण आप ही आ जाते है! धरुवः प्रहाद! मीणा आदि भक्तोंको भजनके दी प्रतापसे भगवानने दयन देकर कृतार्थ किया या। ३ सेवा-सेवा मनुष्यका मुख्य धर्म है । सारे संसार- को भगवान्का खरूप समन्चकर मन; वाणी; शरीरसे भण प्रा० २




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