भगवत्प्राप्ति के विविध उपाय | Bhagvat Prapti Ke Vividh Upaya
श्रेणी : धार्मिक / Religious, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
594 KB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सात उपाय १७
कोई भी शत्रु नहीं है; शील ही जिनका भूषण है; जो
मुञ्च भगवान अनन्य ओर दद्भावते भक्ति करते हः
जिन्हने मेरे स्वि समसत कमो ओर सखजन-वान्धर्षोके
ममत्वको भी त्याग दिया है; जो मेरे ही आश्रित हैं,
मेरी कथाकों मधुर समझनेवाले ६, नित्य मेरी ही कया
कहते-सुनते हैं, ऐसे मुझमें छंगे हुए चित्तवाले वे
साधु त्रिविध तापोंसे पीड़ित नहीं होते । ये समस्त
आसक्तियोंसे रहित होते हैं। वे ही आसक्तिके दोषका
नाश कर सकते हैं । अतएव; हे साध्वि ! उन्हींका
सक्ग करना चाहिये ।
इसलिये हजार काम छोड़कर भी रुदा प्रेमसे और
भ्रद्धासे सत्सज्ञ करना चाहिये |
२ भनन-गोसाईजी महाराज कहते हैं---
वारि मथे वरु होइ घृत सिकताते वरु तेल ।
विनुदरि-भञज्ञन न भव तरदिं यह सिद्धान्त अपेल ॥
बात भी ठीक है | संसारसे तरनेके लिये मगवात-
का भजन ही मुख्य है । भजनके पीछे सारे गुण आप
ही आ जाते है! धरुवः प्रहाद! मीणा आदि भक्तोंको
भजनके दी प्रतापसे भगवानने दयन देकर कृतार्थ
किया या।
३ सेवा-सेवा मनुष्यका मुख्य धर्म है । सारे संसार-
को भगवान्का खरूप समन्चकर मन; वाणी; शरीरसे
भण प्रा० २
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