ज्ञान की खोज में | Gyan Ki Khoj Mein

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: १ : मेरी पहली विदेश-यात्रा की कहानी ६२७ सिल्वन एवेन्यू, एन ० श्रारण बर्‌ मिचिगन (यू० एस० ए०) श्रप्रैल २६९, १९५३ प्रिय प्रेम ! आज मेरा जन्म-दिन है, हुआ करे । मेरे लिए तो सभी दिन महत्त्व- प्रां है । एक-एक क्षण अपनी महत्ता की छाय लगाकर न जाने कहाँ गायब हो जाते हैं। अगर आज से मेंने तुम्हें श्रपनी दूसरी विदेश-यात्रा के दौरान में पहली विदेश-यात्रा की कहानी लिखनी आरम्भ की है तो शायद इसका महत्त्व मेरे लिए सिफ मनोरंजन ही न हीं होगा। मैं चाहता हुँ कि जब तक मैं तुमसे दूर, विदेश में हूँ, तुम्हें मेरी जुदाई का ज़रा भी आभास न हो । में प्री कोशिश करता रहूँगा कि सप्ताह में एक बार तो अवश्य ही इस लम्बी कहानी को थोड़ा-थोड़ा लिखकर तुम्हें भेजता रहूँ । इसे लिख भेजने में में दो लाभ और भी देखता हूँ। प्रथम, मेरा हिन्दी लिखने का अभ्यास होता रहेगा। दूसरे, जब तुम इसे सव्यसाची के सामने पढ़ोगी तो उस पर अच्छा भ्रसर पड़ेगा । और, उसे भी मेरी अनु- पर्थिति का आभास न होगा । मेरी पहली विदेश-यात्रा १४ अगस्त सन्‌ १६४८ को सुबह ६ बजे शुरू हुई थी जब मैंने जीवनमें पहली बार भारत एयरवेज'कं एक डकोटा १ उस वक्तमांकी गोदमेंश्रपि कु ही सप्ताह हुए थे।




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