बुन्देलखण्ड विश्विद्यालय झाँसी | Bundelkhand Vishvvidhyalaya Jhansi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
64 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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किन्तु अपने को सर्वमहान बनने की होड़ में उसके मन यह यथार्थ सूचना समझ में नहीं आती
यह स्थिति उत्तरोत्तर इतनी बढ़ती जा रही है कि पूरे संसार का जनजीवन सुख शान्ति से कोसों दूर
है यदि दुनियां के किसी एक भाग में ऐसी कुछ ऐसी कुचेष्टा होती तो सामूहिक राष्ट्र उसके समाधान
की बात सोचते किन्तु इस संदर्भ में उदू के एक दूसरे शायर कि उक्ति याद आती है-
रोग जिन पौधों में था उनकी दवा दारू हुई
क्या कहा जाये सारा खेत बीमारी मे है,
भूतार्थ तो यह है कि आज का संसार सोचता कुछ है करता कुछ है और जानकारी कुछ इस
त्रिकोण संधर्स ने उसकी हालत खस्ता है कविवर प्रसाद ने ठीक ही लिखा है
ज्ञान दूर् कुठ, किया भिन्न है
इच्छा पूरी क्यों हौ मन की।
एक दूसरे से न मिल सके यह विडम्बना है जीवन की।
विडम्बना का समाधान तभी हो सकता है जव इन तीनों मँ एकात्मता हो किन्तुं यह एकात्मता विज्ञान
के दारा सम्भव नहीं हे इसके समाधान के लिये सामूहिक चेतना को सोचना चाहिए ।
हमने ऊपर विश्व की वर्तमान विसंगति कि कुछ चर्चा कि है इसके उत्तर में विद्यवानों के विभिन्न
मतो कि चर्चा यहा अप्रासंगिक है इसके उत्तर में ध्मा रक्षितः के अनुसार धर्म का आशय ही श्रेयस्कर
हयो सकता है किन्तुं किन्ही कारणों से से राष्ट्रीय चेतना से अलग-थलग पड़ गया हे अध्यात्म या दर्शन
भी एक उपाय है किन्तु उसका विनियोग सुकर एवं सहन नहीं है शासन के दवारा विश्वशान्ति का स्पष्ट
देखना मात्र दिखा स्पष्ट है मित्र राष्ट्र कि मेत्री भी अकिंचित कर सिद्ध हो रही है अन्ततः हमारी दृष्टि
साहित्य कि ओर ही जाती है साहित्य मेँ कान्ता सम्मित उपदेश व्यक्ति कृटम्ब एवं समाज के परिष्कार ध है
में अभूतपूर्व श्रेयोविधान में सहायक होता है इसमें कोई विषंवाद नहीं है किन्तु आज दूरदर्शन तथा ०
चित्रपट ने काव्य साहित्य को गौड़ बना दिया है आज व्यस्त मानव को मनोरंजन मात्र चाहिये आत्मिक
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