सत्यजीत राय का सिनेमा | Satyajit Ray Ka Sinema

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Satyajit Ray Ka Sinema by चिदानन्द दास गुप्ता - Chidanand Das Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना पन्द्रह की प्रकृति को नहीं पहचानता और इसलिए इसकी व्याख्या भी नहीं कर सकता । वह इतना ही कह सकता है कि यह शक्ति वह है जो हमें सुनने देखने सोचने और बोलने की क्षमता प्रदान करती है कुछ व्याख्याएं स्पष्टतः दिक्काल की विसटता कीं उच्च चेतना की ओर इशारा करती हैं ब्रह्म वह है जहां न सूर्य चमकता है न तारे और न चन्द्रमा-ये सब ब्रह्म के प्रकाश से दीप्त हैं # ब्रह्मांड की फ्रकृति और मृत्यु के रहस्य के प्रति अन्वेषण और जिज्ञासा का भाव उपनिषदों में इस प्रकार के अनेक वक्‍तव्यों में अभिव्यक्त हुआ है। ये वक्तव्य आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि के साथ संश्लेघित होते हैं । इसी तरह का भाव रवीन्द्रनाथ ठैमोर के अनेक गीतों और कविताओं में इतनी निरंतरता से अभिव्यक्त हुआ और उनके समय पें शांति निकेतन में इतनी प्रसरता से परिष्कृत हुआ कि उस वातावरण में क्किसित पोषित राय इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते थे । राय की फिल्मों में पश्चियी बाह्य के पीछे यह भाव जिस तरह से व्याप्त है उसकी चर्चा इसी पुस्तक में बाद में की गयी है। शक विदेशी समीक्षक जिसने बिना पृष्ठभूमि की जानकारी के इसे अपने अंतर्वोघ से समझा जो पाउलिन कील थी । उन्होंने राय के काम को अंतर्यापिता के भाव-एक व्यापक संदर्भ में छवियों का प्रलंबन से भरा हुआ पाया । पाउलिन ने अरण्येर दिन रात्रि के संदर्भ में कहा कि राय की छवियां भावनात्मक रूप से इतनी अधिक संतृप्त हैं कि वे कात पें प्रलेबित और कुछ मामलों में सदैव के लिए स्थिर हो जाती हैं। हम पूर्ण बोघगम्य और अबोध्य व्यंग्य रहस्यात्मक के मिश्रण के बीच घिर जाते हैं-गर्मी भरी यात्रा के बाद बरामदे में फैले हुए दो युवक गांव की सड़क पर अंधेरे में नृत्य करता हुआ पियक्कड़ों का एक समूह सिगरेट लाइटर की रोशनी में चमकता हुआ शर्मिला टैगोर का चेहरा-ये छवियां भावना से ओत-प्रोत हैं-और अत्यधिक कभी कभी असहनीय रूप से सुंदर हो जाती हैं । वे भावनाएं जो अंतर्भूत होती हैं हो सकता है उनका विकास कभी न हो फिर भी हमारे साथ शाश्वत भाव बना रहता है । यद्यपि शायद सामंजस्य पूर्ण प्राकृतिक नाट्य जिसके पात्र उसका एक हिस्सा होते हैं । सदैव ही व्यापक और गहरे साहचर्य आसन रहते हैं । हम सामान्य में मिथक की उपस्थिति देखते हैं जब सामान्य तात्कालिक रूप से समाधान प्राप्त कर लेता है तो हमारे साथ जो मिथकीय है वही रह जाता है-मानो दर्शक वर्तमान को अतीत के एक भागु/कि रूप में देख सकता है और उसे जो कुछ हो रहा है उस पर परावर्तित कर सकता हो । पाउलिन यही बात उनकी सभी श्रेष्ठ फिल्मों के लिए कह सकती थी । यद्यपि शांतिनिकेतन में उन्होंने जो समय व्यतीत किया वह मात्र एक वर्ष का था फिर भी इसने उन्हें ब्रह्म-वेदांतिक पृष्ठभूमि से प्राप्त की गई आध्यात्मिक विरासत को उनके भीतर रचाने बसाने का काम अनिवार्यतः किया होगा । जिस प्रकार की संवेदनशीलता की शिक्षा उन्होंने शांतिनिकेतन में प्राप्त की उसका अनुमान नंदलाल बोस वह चित्रकार जिनके शिष्य के रूप में राय ने अध्ययन किया के उस कथन से लगाया जा सकता है जो उन्होंने अपने




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