आशा का एकमात्र मार्ग | Asha Ka Ekmatra Marg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रास्ताविक १३ गओ है। संसारके जितिहासमें पहली वार मैसी स्थिति पैदा हुओ है कि मालके यातायात, चुंगी-कानून या पैसेकी वाधायें न रहते हुओ भी मौजूदा अनाज अत्यन्न करनेवाली जमीनकी पैदावारसे जितने लछोगोंको भोजन दिया जा सकता है जुससे जविक रोग दुनियामें हो गये ह! यह्‌ राय संयुक्त राष्ट्संघकी खुराक और खेती-संवंधौ संस्थाने खेती तथा जनसंख्याके अत्तम अधिकारियोंसे विचार-विमर्श करनेके वाद प्रकट की है। जनसंख्या ओर खेती-संवंधी प्रइनोंके अनेक स्वतन्त्र विश्वेयज्ञोंका भी यही मत है। यहां में कुछ विस्तारसे जिस पर प्रकाश डालंगा। “हमारी लुटी हुओ पृथ्वी” (अंवर प्लन्डर्ड प्लेनेट) नामक अपनी पुस्तकरमे फेयरफील्ड ओंस्वनं यह अनुमान लगाते हँ कि सारे जगते ४ अरब अओकड्से अधिक खेतीके लायक जमीन नहीं है । संयुक्त राष्टृसंघकी सुराक भौर खेती-सम्बन्धी संस्याने जनवरी १९५० की अपनी मासिक पतन्निकार्मे यह अनुमान लगाया है कि संसारमें कुल भूमि ३३ अरब १२ करोड़ ६० छाख ओकड़ है और कृषियोग्य भूमि ३ अरब ७० लाख अकड़ है। कॉर्नेल विश्वविद्यालयके पियर्सन और हैमीजने ' संसारकी भूख (दि वर्ह्दूज हंगर) नामक अपने ग्रंथमें कुछ भूमिके क्षेत्रफलकका अन्दाज ३५ अरव ७० करोड़ जेकड़ क्गाया है । बुन्दोने यह भी अनुमान लगाया है कि जिस सारे क्षेत्रफलकी ४३ प्रतिशत भूमिमें ही फसल अुग्ानेके लिखे काफी वर्षा होती है। जुन्होंने वापिक १५ अच वर्षा ही पकड़ी है, जो पर्याप्त नहीं मानी जा सकती। जिस सारी जमीनके ३४ प्रतिशत भागमें ही जितनी वर्षा होती है, जो पर्याप्त और विश्वस्त दोनों है। भुनका यह विवास है कि ३२ प्रतिरात जमीन पर ही फस अुगानेके लिञे पर्याप्त वर्षा, विश्वस्त वर्षा और पर्याप्त गर्मी पड़ती है। २१ प्रतिशत जमीन पर ही पर्याप्त वर्षा, विश्वस्त वर्षा और पर्याप्त गर्मी पड़ती हैं और वह यितनी ढालवाली है जिससे खेतीमें वावा न पड़े। अन्तमें अन्होंने कहा है कि केवल ७ प्रतिशत भाग पर ही भरोसेके लायक वर्पा होती है, पर्याप्त गर्मी पड़ती है, वह्‌ रगभम वरावर सतहवाखा है गौर सुसकी मिदर जुपजाञू है 1 ३५ गरं




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