संवत प्रवर्तक महाराजा विक्रम - भाग 2,3 | Savtpravarttak Maharaja Vikram Bhag-2-3

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : संवत प्रवर्तक महाराजा विक्रम - भाग 2,3 - Savtpravarttak Maharaja Vikram Bhag-2-3

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about निरंजन विनय - NIRANJAN VINAY

Add Infomation AboutNIRANJAN VINAY

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
४ विद्वानगणमे से कोई प्रतिभाशाली लेखक इस ओर ध्यान न दे” और इस म्रथका विवेचनात्मक अनुवाद तैयार न करे तप तक साहित्यक्षेत्र में यह पुस्तक बहुन उपयोगी द्वोगा यह मेरा विश्वास ই सस्कृत मूल अंब के साथ पुरा संबंध रखा गया है तथापि इस भावानुवाद में सिफ शब्दश. अथ॑ सभी जगह दिवां नहीं पड़ेगा, फिर भी मूलचरिय-प्रंथका परिशीलन करनेकी इन्छा रखनेवतें को, इसमे से ज़रूरी उपयोगी जानकारी अवश्यमेव प्राप्त होगी, मूलभूत वस्तु को केवल द्विन्दी भाषा में भावाजुपार करने की आकक्षासे ही पने यथामति प्रयत्न क्या ह. अनुयाद करने को अभिलापा करे हुई! विक्रम सबत्‌ १५९० मे जो अखिल भारतीय श्री जन श्वेताग्यर सूति पूजक मुनि स मेलन राजनगर-अमदाबाद में समा- रोदपू् क अच्छी तरह समाप्त हुआ था उस में धी जैन समाज के लिये लाभप्रर अनेक शुभ प्रश्वाव किये गये थे, उस में से एक प्रसावये फससयरूप ८ शो जनधर्भसादित्यप्रसशाशक्समिति ” का प्रादुर्भाव हुआ और क्रमशः उस समिति द्वारा “ श्रीजनसत्यप्रकाश ` नामक मासिक पत्र प्रकाशित होने लगा, उस “मासिक क्रमा १०० को विक्रमविशेषाह के रूप में तयार फरने का समितिने मि्य य किया था, उस निर्याय के! अतुसार सम्राद विवमातिय का चलाया दभा व्रिक्रम सन्‌ द २००० वपं पूणं देते थे, चम समय सन्‌ दूमरी सदद्राव्यी कै पूर्णाहुति अर तीसरि सह- মানবীয় আহ काज्त मे विक्रम विशेषाऊ प्रगट करने की जादेराव




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now