नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग १ | Nagari Pracharini Patrika Vol 1

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Nagari Pracharini Patrika Vol 1  by रायबहादुर गोरीशंकर हीराचंद ओझा - Raybahadur Gorishankar Hirachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक-कथन । ्् भमरख' नाम की पाठशाला से, जिसे झब 'कमलमौला' कहते हैं, मिले हैं। भ्रजमेर के चोहान राजा विप्रदराज (वीसलदेव) का रचा हुआ “हुरकलि नाटक', उक्त राजा के राजकवि सोामेश्वर-रचित 'ललित- विभ्हराज नाटक' झौर विग्रहराज या किसी दूसर राजा के समय में बने हुए चोाद्दानें के ऐतिहासिक काव्य की शिलाओं में से पहली शिला, ये श्रजमेर में मिलते हैं। सेठ लोलाक नें “डन्नतशिखरपुराश” नामक जैन ( दिगंबर ) पुस्तक बीजोाल्यां ( मेवाड़ में ) के पास की एक चट्टान पर वि० संवत्‌ १९२६ (इ० सन्‌ ११७०) में खुदवाई थी, जा भ्ब तक सुरक्षित है । चित्तौड़ ( मेवाड़ ) के महाराणा ऊुंभकणा ( कुंभा ) ने कीर्तिस्तंभां के विषय की एक पुस्तक शिलाओं पर खुद- वाई थी, जिसकी पहली शिला के प्रारंभ का अंश चित्तौड़ में मिला है । मेवाड़ के मद्दाराशा राजसिंह ने तेल्नंग भट्ट मघुसूदन क॑ पुत्र रणछाड़ से 'राजप्रशस्ति' नामक २४ सर्ग का महाकाव्य ( जिसमें महाराशा राजसिंह तक का मेवाड़ का इतिहास है ) तैयार करवा कर अपने बनाए हुए 'राजसमुद्र' नामक तालाब की पाल पर ( २४ बड़ी बड़ा शिलाओं पर खुदवा कर) लगवाया था, जा अब तक वद्दाँ विद्यमान है । राजाओं तथा सामंतां की तरफ से ज्राह्मणां, साधुओं, चारों, धघर्माचायी , मंदिरां, मठों श्रादि का धर्माथ दिए हुए गाँव, कु8#ेँ, खेत झादि की सनदें चिरस्थायी रखने क॑ विचार से ताँबे के पत्रों पर ख़ुदवा- कर दी जाती थीं जिनको ताम्रपत्र या दानपत्र कहते हैं । यें कभी गद्य में शरीर कभी गद्य पद्य दोनों में लिखे मिलते हैं । कितने एक दानपत्र एक ही छोटे या बड़े पत्र पर खुदे सिखते हैं, परंतु क्रितने ही दो या अधिक पत्रों पर खुदे रहते हैं, जिनमें से पहला तथा अंतिम पत्र भोतर की ऑओर ही खुदा रहता है श्रौर बाकी दानों तरफ । ऐसे सब पत्रे छाटे हों ता एक, आर बड़े हों तो दा कड़ियों से जुड़े रहते हैं । इनमें बहुधा दान दिए जाने का संवत्‌ , मास, पक्ष झौर तिथि तथा दान देनेवाले भ्ोर लेनेवाले के नामों के भ्रतिरिक्त किसी किसी में दान देनेवाले राजा क॑ घंश का वणान तक मिलता है । पूर्वी चालुक्यों




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