विदिशा | Vidisha

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Vidisha by महेश्वरी दयाल खरे - Maheshwari Dayal Khare

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रागविहास : [_] प्रागतिहास के पुर्व सृष्टि की क्या अवस्था थी, इस पर संक्षेप में विचार कर छेना नितान्त आवश्यक प्रतीत होता है; क्योंकि प्रार्ग तिह्दास तथा भू-विज्ञान का अत्यन्त अटूट सम्बन्ध है । यदि ब्रह्माण्ड की आयु चौवीस घण्टे मान ली जाये तो उसमें मनृप्य का जन्म केवल आधे सेकंड पूव॑ ही हुआ था । भू-विज्ञान के अनुसार! सृष्टि का जन्म लगभग पाँच से दस अरब वर्ष पूर्व हुआ था, जिसके परचात सौरमण्डलू, पाँच से छः तथा पृथ्वी चार से पाँच अरब चर्ष पूर्व प्रकट हुये थे । कंब्रियन युग के प्रारम्भ में डेढ़ अरव दर पूर्व से जीवाइम प्राप्त होने लगते हैं । गसीय अम्बार के करोड़ों धार सम्पीड़ित होने पर सितारों का जन्म हुआ, किन्तु रासायनिक तत्वों को प्रकट होने में पाँच सिन्टि से आधे घण्टे का समय लगा होगा, ऐसा भअनुमाना गया हैं। विद्व निर्माण के बिपय में दो मह है। “विकासवादी सिद्धान्त” (एएणपपं00कषए (0) के अनुयाइयों का दिदार है कि समस्त पदार्थ सात से नौ अरब वर्ष पुरव॑ एक स्थान पर केस्द्रित रहे होंगे, किन्तु “स्थिर अवस्था सृष्टि मत्त” (5680४ 88८ एएं एटा86 ५60) है कि इसका न प्रारम्भ है और न अंत, व्योंकि विश्व के पदार्थ कभी नष्ट नहीं होते, केवल उनके रूप में परिवर्तन होता है । पृथ्वी के क्रोड़ की भौतिक स्थिति का भी अभी तक किसी को पूर्ण ज्ञान नहीं हो सका है, यद्यपि इसके सतह पर वे सभी आवश्यक तत्व विद्यमान है जो दिद्व में पाये जाते हैं। बैज्ञानिकों का मत है. कि इसका वाह्य करोड तरल है तथा आंतरिक क्रोड ठोस । इसी प्रकार सूर्य की ऊपरी सतह का तापमान 6000 सेण्टीग्रेड है व उसके केन्द्र का लगभग वीस 1. स्टोक्स, विलियम ली; एसेसियत्स आफ अं हिस्ट्री, ऐन इन्ट्रोडक्शन टु हिस्टारिकल जियोछाजी, 1960,




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