पार्सी परिचय | Paarsi Parichay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन ईरान अर्थात्‌ यह तपस्या-च्षेत्र किन्नरों का हेमकूट पवत है।. यहीं सुर्रों व श्रसुरो के गुरु कश्यप ऋषि सपत्नीक तपस्या करते हैं। इस प्रदेश के निवासी श्रब भी झ्पने के कश्यपवंशीय 08580 7806 मानते हैं । सोमक पर्वत पर देवों ने समुद्र-मथन के समय शरम्त पिया था सवै सोमक इत्युक्तो पुरा मत्स्यपुराण ।. समुद्र मथन कश्यप सागर का हुआ था कच्छुप की पीठ मथी गई थी 2 । विष्णपुपुराण सुमना अ्म्बिकेय पर्वत का एक खण्ड मैनाक या क्षेमक है | तस्यापरे चाम्बिकेयः सुमनाश्वैव संस्मृत । श्रम्बिकेयश्च सैनाक॑ तत्स्मृतम्‌ ॥ मत्स्यपुराण ३६६ रत्नाकर पर्वत कश्यप सागर के निकट है । यहीं समुद्र-मथन में १४ रत्न निकले थे । इन प्रमार्णों से सिद्ध है कि फ़ारस बैबीलोन अरब सीरिया श्र्मीनिया एशिया माइनर श्रौर लालसागर के तथवर्ती देश शाकद्दीप में थे | से एक उदाहरण भारत की भौगोलिक सीमा का लीजिए । ्समुद्रात्त वै पूर्वादासमुद्राततु पश्चिमात्‌ । तयोारेवान्तर गियोंरार्यावर्त विदुषु घाः । सरस्वती दृषद्वत्योदेवनद्योयंदन्तरम्‌ । त॑ देवनिर्मितं देश श्रायांवत प्रचच्तते ॥ मनु० २।१७ २२ श्र्थात्‌ पूर्व में समुद्र से लेकर पश्चिम में समुद्र तक पत्तों के श्रन्तर्गत प्रदेश के विद्वान्‌ लोग श्रार्यावर्त मानते हैं । पूव में सरस्वती पश्चिम में दषद्वती नदियों के मध्य जितने देश हैं उन सबके देश कहते हैं क्योंकि यह विद्वानों देवों ने बनाया है | पूव का समुद्र बड्ञाल की खाड़ी है । पश्चिम का समुद्र शरब- सागर है । सरस्वती ब्रह्मपुत्र का नाम है जो झआसाम में बहती है । दृषट्वती या दरगवती के श्राधुनिक इतिहासवेत्तात्ों ने सिन्धु नदी मान- कर जो ऐतिहासिक भूल की है उसका प्रायश्चित्त करना भी कठिन है।




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