कार्यालय कार्य - विधि | Kaaryaalaya Kaarya Vidhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारम्मिक श्रालेखन 9 तो नहीं होता कि स्दव के लिए ही दान्ति का बहिष्कार कर दिया हो । तुम्हें मालूम होना चाहिए शान्ति कि सागर पर सूये का ताप चन्द्रमा की शीतलता नदियों का भ्रपार जल घन पर घन वर्पा पर वर्षा हिम पर हिम आदि शझ्नेक प्राकृतिक श्रवयवों का दिन-रात झ्राक्रमण होता है पर सागर सबको सभी का उचित श्रनुदान प्रदान कर प्रसन्न रखता है । एक के भी श्रभाव में सागर में ज्वार-भाटा उठने लगता है श्रौीर लहरों के रूप में बड़े-बड़े तूफान श्रा जाते हैं जिससे संसार भयभीत हो उठता है । इसी प्रकार तुम्हारे श्रश्नुप्मनों को पॉंछनेवाला यह भाई बहिनों तथा अन्य मित्रों को यथायोग्य प्रेम-श्रनुदान प्रदान करता है । यदि ऐसा न हो तो जीवन में ग्रशान्ति रूपी तूफान श्राकर इस शरीर रूपी संसार को नष्ट कर देता है । ऐसी परिस्थिति में किस का सहारा रहता है--केवल शान्ति का । राम ने शान्ति को बहिन के रूप में इसलिए तो नहीं श्रपनाया कि स्वयं दुखित हृदय के भावों से निर्मल शान्ति को मलिन कर दिया जाये । राम की उन्नति के लिए राम को पंग-पग पर शान्ति को आ्ावदयकता है । उसे चाहिये चारों श्रोर शान्ति । राम डरता है कि शान्ति डरकर कहीं राम का हाथ न छोड़ दे क्योंकि शान्ति उसकी सहोदरा तो नहीं । तुम्हारा भाई रामानन्द कुलश्रेष्ठ रूसी महिला की झ्ोर से लेखक को हिन्दी में लिखा गया एक पत्र फ़रब्जे-2 किरगीज सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक यु० एस० एस० झार० | दिनांक 7-5-62 । श्रीमत भाई नमस्ते... श्रापुका पत्र झर फोटो मिला पर जवाब देर से दे रही हूँ । इसके लिए भ्रापसे क्षमा चाहती हूँ । ऑ्राशा है कि श्राप इस बात पर मुभसे नाराज़ न होंगे । झ्रापका भ्रच्छा मित्रतापूर्णं पत्र पढ़कर मुझे बड़ी खुशी हुई । मैं इतना जानती हूँ कि आप हमारे मित्र हैं ्रौर हम दोनों बच्चों को पढ़ाते हैं । पत्र मित्र बनाकर हम दोनों एक-दूसरे को समभऋ व समभा सकेंगे । भ्रापके देश भारत श्रौर झ्रापके देश के रहनेवालों से मुझे सदा से ही दिलचस्पी रही है । श्रौर मेरी दिलचस्पी इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि मैं भारत के लोगों को बहुत ही इज्जत से देखने लगी । मेरी ही नहीं बल्कि हमारे देश के सब लोगों की यही मनोकामना है कि भारत श्रौर रूस की मित्रता सदा बनी रहे सदा अमर रहे ।




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