भक्तियोग | Bhaktiyog
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
147.73 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रार्थना या १. सोक्षकी घाषिकों भी
चह तुच्छ समझता है । केवल प्रभुपापिकी ही आकांक्षा इस
हृदयको होती हैं। की
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं.--“जिसने अपनी आत्मा मुझ.
अपंण कर दी है, उसे न ब्रह्मासनकी आकांक्षा रहती है, ने.
इन्द्रासन की, न. चंद अखिछ चिंश्य सवार हता
है; न पाताल स्वामित्वको | यहांतक कि, वह पूवजन्मसे छुट-
कारा पानेकी थी आकांक्षा नहीं रखता |
अन्य किसीकी न इच्छा नहीं होती !
श्रीमदुभागवत स्कंघ ११ अध्याय १४ )
भक्तसाज रामप्रसादने सत्य कहा है - “भक्ति महारानी
सुक्ति उसकी दासी । जिस मनुष्यका हृदय प्रभुभक्तिके
रससे परिपूर्ण है, ज्ञिसके हृदयमें पशु भक्ति रूपी
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