नटककर हरिकृष्ण प्रेमी | Naatakkaar Harikrishna Premii

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Book Image : नटककर हरिकृष्ण प्रेमी  - Naatakkaar Harikrishna Premii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेमीजी के नाटकों की सुल प्रेरणा | दे प्रकार व्यक्त किया है-- इस पुस्तक मे मैंने एक निद्चित श्रादर्श रखने का प्रयत्न केवल इसलिए किया है कि वह श्रादशं प्रेम है-मेरा प्राण है । राजनीति मुझे प्यारी नही परन्तु भाँसुभ्नो से भ्राहो से दु खो से मानवता के शझ्रपमान से मेरे हृदय का सीधा सम्बन्ध है इसीलिए यह तुतली-सी तान बरबस निकल पडी है । इस पुस्तक मे केवल राष्ट्रीयता ढूढनेवाले जगह-जगह प्रेम के उच्छद्डल गीत सुनकर बिगड बंठेंगे परन्तु मैं प्रेमहीन ससार को दमशान से भी बुरा समभ्ता हूँ । इसी प्रेम-भावना ने उन्हे सानव-प्रेम और देश-प्रेमकी उत्कट विचारधारा की श्रोर उन्मुख किया भर इसी प्रेरणा के कारण वे कला को कला के लिये मानते हुए भी सोदेश्य नाटक रचना कर सके । प्रेमीजी ने केवल लिखने के लिए नहीं लिखा बल्कि अपने प्राणो का झासव पिलाकर मानवता समाज श्र देव को नई स्फृति देने का श्रायोजन किया है ।




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