फांसी | Faansi

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Faansi by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फाँसो ओर दीवरों की वेटनी में निर्ज व श्ख्खलित जीवन के सुखद दुख की माला मैं ऊिसके लिए गूथू मेरी यह माला कॉन पहनेगा ? से तो आज इस संसार का मनुष्य नहीं हा । इस लोक ओर परलोक के बीचों-बीच एक स्थान पर खड़ा हूँ । मैं किसका आश्रय मॉँगूँ ? मेरा अब कोन है ? फिर भी से अपनी व्यथाओं को वेदना की डोर में -यूधूँगा । में अपने ब्यथित भावों को लिख जाऊँ गा । देख्- कर ठोग घृणा करेंगे ? करने दो । लोगों ने सुझे श्रणा के सिवा आओर दिया ही क्‍या हैं? मेरे दुःख सें उनके हृदय में सहानुभूति जगी ही कब थी ? फिर में उनका भय क्यों करूँ ? उनकी घृणा से मेरा अब क्या भाता-जाता है दिल के अन्दर एक आँधी चल रही हैं एुक॒भीफ्ण संग्राम हो रहा है यह लड़ाई है कठिन अर कोर मोत के साथ जिसके जीवन के दिन बिलकुल शगिन दिये गये हैं उसकी अवस्था-+ओह प्रकार दीघ दी बुझा दिया जायगा। जीवन का प्रकार भी बुस जायगा । हाँ दीघ्र ही 1 पल-पछ में जिस भीषण यस्त्रगा का सामना मैं कर हा हूं -तुच्छ फाँसी की रस्सी-उसकी यन्त्रणा क्या. श्ह




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