मोरारजी देसाई | Moraarajii Desaaii

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Moraraji Desai by यशवंत दोशी - Yashwant Doshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बचपन और शिक्षा पर किए थे अतः वे परीक्षा में नहीं बैठ सके और एक वर्ष बेकार गया। फरवरी 1912 में उनके 16 वर्ष पूरे हुए अतः उसी वर्ष अक्तूबर में उन्होंने परीक्षा दी। परीक्षा देने के लिए अहमदाबाद जाना था। जिस दिन वे निकले उस दिन नरक चौदशी थी लेकिन मोरारजी को इसके बारे में कोई वहम नहीं था। घर में भी किसी ने वहम नहीं किया और मोरारजी मैट्रिक की परीक्षा दे आए। नतीजा निकला तो मोरारजी अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुए। पूरे विश्वविद्यालय में वे 45वें स्थान पर आए थे। वे और अच्छे अंक ले सकते थे लेकिन गणित में प्रतिभावान होने के बावजूद उस विषय में उनको केवल 55 प्रतिशत अंक ही मिले थे। यद्यपि उसमें दोष मोरारजी का ही था। गणित के पर्चे के उत्तर देते समय उन्होंने भूमिति के कठिन प्रश्न पहले हल किए जिसमें अधिक देर हो गई इसलिए आसान सवालों के उत्तर देने का समय ही नहीं बचा। फिर भी विश्वविद्यालय में पहले पचास छात्रों में अपना स्थान बना लेने से उनको काफी लाभ मिले। अब क्या ? असल समस्या अब शुरू होती है। पति के स्वर्गवास के बाद मणिबहन पिता के आग्रह के कारण अपनी संतानों के साथ मैके में रहने लगीं लेकिन छह महींने के अंदर ही पिताजी का भी स्वर्गवास हो गया। थोड़े ही समय में परिवार में कुछ कहासुनी हो गई और स्वाभिमानी मणिबहन अपने बच्चों के साथ भदेली त्याग कर वलसाड़ के घर में आकर रहने लगीं । ..... बलसाड़ में परिवार की हालत कठिन थी। संतानों में मोरारजी सबसे बडे थे । उनके बाद तीन भाई और तीन बहनें थीं इसके अलावा दादी माता और पत्नी समेत दस सदस्यों का परिवार था। बड़े होने के कारण इस बड़े परिवार का दायित्व 16 वर्ष के मोरारजी पर आ पड़ा। परिवार की कोई आमदनी नहीं थी। मणिबहन की माताजी को अपनी पुत्री के प्रति अपार प्रेम था इसलिए मैके की तरफ से कुछ सहायता मिल जाती थी। ऐसी हालत में मोरारजी कालेज में पढ़ने का विचार भी कैसे कर सकते थे ? और तिस पर भी मुंबई जाकर पढ़ना था । इसके लिए खर्च कहां से आए ? वलसाड़ में परिवार का क्या हो ? बड़ा लड़का नौकरी-पेशा होकर परिवार का दायित्व संभाल लेगा इस तरह की आशा माता को भी होती है। फिर भी मोरारजी आगे पढ़ना चाहते थे हालत कठिन थी तथा माता को समझाना मुश्किल था। ऐसे में एक सानुकूल घटना घटी । रणछोड़जी देसाई ने जहां पर जीवनपर्यत शिक्षक के रूप में सेवा की थी उस भावनगर की रियासत के महाराजा ने प्रतिमाह 10 रु. छात्रवृत्ति देने की पेशकश की । इस छोटी-सी घटना ने मोरारजी के भविष्य के दरवाजे खोल दिए। माता ने अनिच्छा. से मोरारजी को




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