रतनावली | Ratnavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.39 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बद रललादली के दोदे
बाद्यण सिद्ध करने के उन्सुरू हैं, शरीर इसके लिये श्राप प्ॉकत
हुनशी-चरित का सद्दारा लेते हैं, जिसे झाज तक बावू इद्व-
नाराययमिंद क श्रतिरिक्त किसी दूसरे ने नहीं देखा, जैसा रबी ने
स्वयं रची कार किया है & । चह सदा से प्रमाणभूत इस कथोपकथन
को जानते-मानते है ( जिसका समर्थन ग्रियसैन, गरीब एवं '्न्य
योरप-निचासी लेखक भी करते हैं ) कि मीस्वामी तुलसीदास
'ार्माराम योर जुलसी क पुन थे , दीनबंघु पाठक की घुद्ी रलवली
से उनकां विवाह हुझा, तारापति नाम का उनके एक सुत्र हुआ, जो
जन्म से थोड़े दी दिन पीछे परलोकगामी हो गया । तथापि शुक्रडी
इस निणुय की 'घोर छकुके प्रतीत होते हैं कि गोस्वामीजी सुरारि
मिघ के पुन्न ये, उनके तीन विवाह हुए, श्र धंतिम वियाह घुद्धि-
मती से हुमा । ऐसा क्यों ? क्पोकि. तुल्सी-चरित्त' ऐसा कहता
है । चह प्रियल्लन की इतनी सम्मति को तो उचित समझते हैं. कि-
गोस्वासीजी राजापुर में दौर सरयूपारीण बाद्यण-कुल में उत्पन्न हुए,
किंतु इससे श्ागे यद नहीं सानते । अपने श्रसिप्राश-साधन के
निमित बह 'राम-बोला' शब्द को क्लिए-कड्पित निरुक्ति राम ने
श्पना लोल दिया* करते हैं, इसी प्रकार “जनमि'-शब्द का अर्थ
बयलाते हैं. 'जिपने जन्म दिया हे” द । विनय-पक्िका श्रीर
* कबितावली के जिन चाक्यों का अर्थ पं० सुधघाकर द्विधेदी श्ादि
विद्वान यद करते हैं. कि तुलसीजी को बचपन में माता-पिता ने
स्पाग्र दिया था, उन्हीं चचनों के ध्ययुसार शुज्रजी की सम्मति में
तुलपतीदृस बचपन में अपने माता-पिता द्वारा काम-धंधें में सन न
लगने के कारण श्लग कर दिए गए । झुन सब चातों को शुद्धसी
ने 'तुलली-चरित'-रूप गीप्य निधि के आधार पर माना था ।
छ तुलसी अेचावनी ( श्रह्तावना 0, प्रष्ठ ३७ ।
न हुखन्ली-मेंचावली ( अस्तावना ), प्रष्ठ २४-रथ ॥
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