रतनावली | Ratnavali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ratnavali by रामदास भारद्वाज - Ramdas Bhardwaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामदास भारद्वाज - Ramdas Bhardwaj

Add Infomation AboutRamdas Bhardwaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
बद रललादली के दोदे बाद्यण सिद्ध करने के उन्सुरू हैं, शरीर इसके लिये श्राप प्ॉकत हुनशी-चरित का सद्दारा लेते हैं, जिसे झाज तक बावू इद्व- नाराययमिंद क श्रतिरिक्त किसी दूसरे ने नहीं देखा, जैसा रबी ने स्वयं रची कार किया है & । चह सदा से प्रमाणभूत इस कथोपकथन को जानते-मानते है ( जिसका समर्थन ग्रियसैन, गरीब एवं '्न्य योरप-निचासी लेखक भी करते हैं ) कि मीस्वामी तुलसीदास 'ार्माराम योर जुलसी क पुन थे , दीनबंघु पाठक की घुद्ी रलवली से उनकां विवाह हुझा, तारापति नाम का उनके एक सुत्र हुआ, जो जन्म से थोड़े दी दिन पीछे परलोकगामी हो गया । तथापि शुक्रडी इस निणुय की 'घोर छकुके प्रतीत होते हैं कि गोस्वामीजी सुरारि मिघ के पुन्न ये, उनके तीन विवाह हुए, श्र धंतिम वियाह घुद्धि- मती से हुमा । ऐसा क्यों ? क्पोकि. तुल्सी-चरित्त' ऐसा कहता है । चह प्रियल्लन की इतनी सम्मति को तो उचित समझते हैं. कि- गोस्वासीजी राजापुर में दौर सरयूपारीण बाद्यण-कुल में उत्पन्न हुए, किंतु इससे श्ागे यद नहीं सानते । अपने श्रसिप्राश-साधन के निमित बह 'राम-बोला' शब्द को क्लिए-कड्पित निरुक्ति राम ने श्पना लोल दिया* करते हैं, इसी प्रकार “जनमि'-शब्द का अर्थ बयलाते हैं. 'जिपने जन्म दिया हे” द । विनय-पक्िका श्रीर * कबितावली के जिन चाक्यों का अर्थ पं० सुधघाकर द्विधेदी श्ादि विद्वान यद करते हैं. कि तुलसीजी को बचपन में माता-पिता ने स्पाग्र दिया था, उन्हीं चचनों के ध्ययुसार शुज्रजी की सम्मति में तुलपतीदृस बचपन में अपने माता-पिता द्वारा काम-धंधें में सन न लगने के कारण श्लग कर दिए गए । झुन सब चातों को शुद्धसी ने 'तुलली-चरित'-रूप गीप्य निधि के आधार पर माना था । छ तुलसी अेचावनी ( श्रह्तावना 0, प्रष्ठ ३७ । न हुखन्ली-मेंचावली ( अस्तावना ), प्रष्ठ २४-रथ ॥




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now