आधुनिक हिंदी कविता में अलंकारविधानं | Adhunik Hindi Kavita Mein Alankar Vidhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदीश नारायण त्रिपाठी -Jagdeesh Narayan Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२४ द आधुनिक हिन्दी-कविता में अलंकार-विधान
योग्य अलंकार प्रधानत: काव्याड्भभूत ई ^ काव्य में केवल वे ही अलंकार-प्रयोग
अपेक्षित हैं जो बुद्धि तथा कान दोनों को प्रिय लगें। कुछ अलंकार क्रेवल बुद्धि को
ही प्रभावित करते हैं और उनका प्रभाव अर्थ समझने के उपरांत पड़ता है। कुछ
अलंकार श्र ति-मधुर होते हैं और सुनते ही उनका प्रभाव पड़ने लगता है, परन्तु
कृद अलंकारो में दोनों गुण समझूप से रहते हं । श्रेष्ठ प्रयोग तभी सम्भव होगा
जब अलंदार का आधार तकं हो और वह श्र्तिमधुर भी हों ।
_अंलंकारों दरार भावोद्रेक में सहायता मिलती है ओर भावों की व्यंजना चित्र
रूप मे होने लगती है जो अत्यंत प्रभावपुर्णं तथा आकषक होती है । कवि-कल्पना
की तूलिका यथार्थ के आधार पर आकर्षक भावना-चित्रविचित करती है,।
और सूंदरतम सत्य का आभास मूत्तंरूप मे देने की चेष्टा करती है; परन्तु शैली
मे यह गुण तभी आयेगा जब जड-चेतन प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण होगा । निरीक्षण
द्वारा अलंकार-प्रयोग में सफलता प्राप्त होगी, तथा भावों का आलंकारिक चित्रण
भी सरल हो जायगा, परिणामस्वरूप आलंकारिक उक्तियों मे दुरूहता के स्थान पर
स्पष्टता अयेगी | उनके द्वारा नवीनता, विलक्षणता एवं भव्यता का आभास मिलेगा, |
किन्तु अलंकारों का अधिक प्रयोग न होना चाहिये अन्यथा शैली बोझिल हो जायगी,
सामंजस्य दूर हो जायगा, फलस्वरूप प्रभविष्ण॒ता मे कमी भा जायगी |, अलंकार
वाणी-विभूषण हैं | वे भाषा को उबर बनाते हैं। भाषा को महत्-से-महत् सत्य की
अभिव्यंजना करांने की शक्ति प्रदाव करते हैं। पाठकों को गहरे रूप में प्रभावित
करते हैं और अभिव्यंजना में सौष्ठठ और सौंदर्य की प्राण-प्रतिष्ठा करते हैं।
अलंकार केवल कवि की सौंदर्य-प्रियता के ही द्योतक नहीं है, अपितु उसकी सीमित
शब्दावली के भी प्रमाण हैं। जब कभी छब्द-शक्ति कवि को निराधार छोड़ देती है,
तब वह कल्पना शक्ति के सहारे अलंकारों के तथा लाक्षणिकता के मनोरम देश में
पहुंच जाता है और वहाँ से नये-नये रत्नाभूषण लाकर कविता-कामिनी का अभिनव
श्पुगार करता है 1२,
भ्रल कार-प्रयोग में सतकंता आवश्यक है ओौर लक्ष्य पर समुचित विचार
करने के पश्चात् ही अलंकार-प्रयोग करना चाहिए । उदाहरणार्थं यदि सौन्दयं की
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