वैज्ञानिक भौतिकवाद | Vainj-aanik Bhautikavaada

Vainj-aanik Bhautikavaada by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ वेशानिक भौतिकवाद होने नहीं देता; यही वजह है, जो कि हम प्रकृतिके बारेमे जितने इतमीनानके साथ भविष्य कथन कर सकते ह, मनुष्यके बारेमे उतना नहीं कर सकते । आप इससे खुश न होइये--श्रच्छा हुआ जो मनुष्यकी ( इच्छा या कमंमें ) स्वतंत्रता सुरक्षित रह गईं, और वह नियतिके पाशमें बंधा “मदारी'का भालू नहीं बन गया। नियतिवाद श्नौर स्वातंत्रय्वादकी समस्या काफी गहन हें--खासकर जब कि प्रकृति ( प्रयोग )का सहारा छोड़ लोग इससे आकाशके सितारे तोड़ने लगते हैं । हाँ, तो प्रदन है--जब प्रकृतिमें सर्वेत्र कार्य-कारण-नियम व्यापा हुआ है ( इसे माने बिना कोई साइंस-संबंधी गवेषणा संभव नहीं ), तो मनुष्यको “स्वतंत्रः कर्ता” कंसे कह सकते हूँ ? काय-कारण-नियम एक जबरदस्त नियति ( भाग्य ) हं, जिसके द्वारा विरवकी प्रत्येक वस्तु ( घटना- प्रवाह ) नियत ह; तभी तो हम प्रयोगशाला, या वेधशालामें कार्यसे कारण तक पहुँचनेका प्रयत्न करते हें; अ्रथवा कारणसे कार्यके संभव होनेका ख्यालकर उसके पानेके लिये परिश्रम करते हँ । फिर तो बेचारा मनुष्य हाथ-पैरते बंधा ह, उसकी तो सासि भी इसी कार्यं-कारण-नियमके अधीन है । इसका अर्थ दूसरे शब्दोंमें यह हुआ कि हमारी इच्छा हमारे अ्रन्तस्तम विचार सभी नियति--भाग्यके हाथमें हें। फिर तो यह भी मानना पड़ेगा कि विश्वके भीतर एक खास प्रयोजन छिपा मालूम होता है, और उसका संचालक ईदवर' यह सब कुछ एक खास प्रयोजनसे करता हँ। कितु अभ्रभी इतनी दूर तक जानेकी ज़रूरत नहीं; क्योंकि नियतिवाद दुधारी तलवार है, यदि वह मानवको हाथ-पैर बांधकर छोड देगा, तो ईश्वरकी दशा भी उससे बेहतर न होगी, वह भी नियतिके हाथकी कठप्‌तली मात्र रह जायेगा । देखना है--क्या कायं-कारण-नियम सचमुच ही इतना प्रबल है । यदि एेसा होता तो कायं-कारणको एक तलपर टीक चक्कर काटते देखते




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