तुलसी दास की भाषा | Tulsi Das Ki Bhasha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जैसा हम श्रागे देखेंगे। श्रस्तु, तुलसी की भाषा की एक व्यापक एवं उल्लेखनीय विशेषता
--विविधरूपता--का सर्वप्रथम आधिकारिक उद्घाटन करने का श्रेय आचाय भिखारी
दास को ही दिया जायगा | इस दिशा में यही उनकी एक मात्र देन कद्दी जा सकती है
जो ग्राधुनिक समालोचना के मानद्ड से भले दी साधारण-सी जान पड़े, किन्तु जिसके
ऐतिहासिक महर्ख की कोई भी विचारशील व्यक्ति उपेज्षा नही करेगा |
धुंल़ती के समलोचना-साहित्य” के अन्तर्गत जिस सामग्री की चर्चा की गई है
उसमें नोट्स आन तुलसीदासः, मिश्रबधु विनोट, नवरल, वलखीदास, हिन्दी-सादिव्य का
इतिहास, तुलसी-ग्रंथावली की भूमिका, विशेष विवेचन की श्रपेज्ञा नद्ीं रखते, क्योंकि
केवल इने-गिने सामान्य स्फुट संकेतों के सिवा प्रस्तुत काये की दृष्टि स उनमें कुछ भी काम
की वस्तु नहीं है। शेष के विष्रय में अत्यंत संज्षिस विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
१--रामायणीय व्याकरण --श्री एडविन ग्रीव्स की इस छोटी-सी पुस्तिका के
अन्तगंत तुलसी के रामचरितमानस से कतिपय ब्याकरणिक रूपों का सक्ति संकलन
किया गया है | साथ दहवी किसी-किसी रूप की व्युत्तत्ति के सबंध में भी यत्रतत्र स्फुट
उल्लेख मिल जाता है।इस छोटी कृति की सबसे बढ़ी उपयोगिता यही है कि यह
किसी कवि के एक अथ की भाषा के एक विशिष्ट अग--व्याकरण--के अध्ययन की
दिशा में प्रयास करने वाली कदाचित् अपने ढग की प्रथम और अकेली कृति रही है |
यह तुलसी की भाषा की सर्वाज्नीण विवेचना की ओर न सही, कम से कम उनकी एक
कृति की व्याकरणिक छानबीन की ओर इमारा ध्यान ले जाती है। इसीलिए. अपनी
न्यूनताशओ्रों के साथ भी इसका महत्त्व अ्रपनी सीमा में अक्षुण्ण ই।
२--मानस-प्रयोध--श्री विश्वेश्वरदतत शर्मा का यह अंथ श्रधिक प्रसिद्ध एव लोक-
प्रिय न होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से कम महर्वपूर्ण नहीं कह्ा जा सकता, क्योकि
प्रस्तुत निबंध के लेखक के अनुमान से, तुलसी की भाषा के शास्त्रीय अ्रध्ययन की दिशा
में, यह मी अपने ठग का पहला प्रयास था, जिसमें वाक्यप्रयोग, शब्दप्रयोग आदि
से संबंधित विशेषताओों पर अधिक ध्यान दिया गया था | गोस्वामी जी के “मानस? की
शब्दावली को, जनता के लिए, अ्रधिक सुवरोध बनाने में इस कृति की विशेष उपयोगिता
जान पड़ती है। वस्त॒तः यही ग्रथ-लेखक का मूल अभिप्राय भी प्रतीत होता है |
* तुलसी की सापा का अध्ययन, लेखक का प्रसुख विषय न था, यह वात उसके
निम्नलिखित कथन से चौर सी पुष्ट ह्ये जाती है :-.-
“यद्यपि हमने इसका नाम 'मानस-प्रवोध!” रखा है, तो सी ज्ञानना चाहिए कि
इसके ये नाम भी दो सकते हैं--- (१) तदूभव प्रकाश (२) प्राकृत हिन्दी चंद्रिका और (३)
छुन्दो व्याकरण, क्योंकि इन नामों के गुण विद्यार्थी को हसमें मिलेगे। दमने इसमें, 'रामच-
रितिमानस! के उदाहरण दे देकर नियम रचे है, इसलिए इसका नाम 'मानस-प्रवोध” रखा
है ।--मानस-प्रबोध, पृष्ठ ३, ४
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