भगवान रामचंद्र | Bhagwan Ramchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राम जन्म ९३ सन्तों फा उद्धार करने के लिये और ग्रहस्थों की मिटती हुई लोक मर्यादा के फिर से स्थापित फर आदशे रूप वमाने के लिये अवतार की आवश्यकता हुई और भगवान राम का अचतार हुआ 1 रास जन्म्‌ विप्र घेनु सुर सन्त हित, लीन्ह অন্তু अवतार । निज इच्छा निर्मित तनु, साया गुण गेपार ॥ उस समय उत्तर भारत में जहाँ राक्षस अधिकता से नहीं पहुँच सके थे और कहीं कहीं राजा लेग अपने धर्म कर्तव्यो का पालन करते हुए रह रहदे थे। ऐसे ही स्थानों में अयेध्या प्रसिद्ध नगरी थी। अयोध्या के राजा उस समय दशरथ थे। महाराजा दशरथ बड़े श्रतापी और धर्मात्मा राजा थे। अपनी प्रजा का थे पुत्र की भाँति पालन करते थे । प्रजा भी उन्हें पिता की भाँति मानती थी । महाराज दशरथ ऊ तीन रानिया थीं कैरिल्या, केकेयी और सुमित्रा । महाराज दशरथ के धन सम्पत्ति की के कमी न थी चिन्तु उनके केष पुत्र न था } दसकी चिन्ता उन्द्‌ रातदिन सताए रहती थी । शुवावस्या भी जव ढलने लगी घौर उनके कोई पुत्र न हुआ वो उम और भी अधिक चिन्ता और दुख ने आधेरा। महाराजा दशरथ के सूर्यवंश में उनके पूवेज अज, दिलीप, रघु, इच्चाकु आदि बड़े यशस्वी, धर्मात्मा श्रौर अतापी राजा हो चुके थे वही




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