बदला | Badla

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Badla by श्री जितेन्द्रनाथ - Shri Jitendra Nath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बदला मिलगा उतना और किसा भी काम से नहीं मिछेगा । जीविका के लिय मेहनठ करनी पड़े तो जिसमें शुझे अधिक आनन्द मिठेगा वही में करूंगा । छेकिन फिर भी जीविका के लिये लड़ाई में जाओगे हाँ जब दुश्मन के वार से देश विपद-ग्रस्त होता है तब हथियार लेकर सब पुरुषों को युद्ध में जाना पढ़ता है शायद कभी-कभी स्त्रियों को भी जाना पड़ता है । पर तुम जीविक के लिये सैनिक होकर युद्ध में जाओगे ? जीवन के लिये ही जीविका हैं । जीविका के लिये जीवन को युद्ध की आग में सौप दोगे ? कौन जानता है कि अगर. . मुस्करा कर रत्नेदवर ने कहा-- अगर मृत्यु हो जाय तो हो द्वानि क्या हूं ? कब और कहाँ मृत्यु नहीं हो सकती है ? जब समय पूरा हो जायगा तब मरना ही पड़ेंगा । विधाता ने जहाँ जिसे तरह की मृत्यु निर्दिष्ट की है वहीं उसी तरह मरना है । इसके लिये जो सोचता है डरस्ता है वह बहुत ही मूढ़ है कुसुमिका नें एक साँस दबा कर कहा-- रत्नेश्वर मेंने सुना हैं कि अपनी सारी सम्पदा मूझे देकर तुम बिलकुल फ़कीर हो गये. . . यह बात क्यों उठा रही हो कुसुसिका ? देकर मुझे जो आनन्द मिला है लसकी तुलना में यह दान बहुत ही तुच्छ है फिर भी उसके लिये ही न तुम जीविका-अर्जेन करने को बाध्य होते हो . और उसके लिये ही युद्ध में जा रहे हो ? यदि तुम्हारी सम्पदा रहती तो क्या तुम जाते ? जीबिंका के लिये नहीं जाना पड़ता पर आनन्द के लिये दायद जाता . जिसने भस्त्र-विद्या आग्रह के साथ सीखी है बह युद्ध के आज्ान से सहज ही श्रलुब्ध हो जाता है । मृत्यु के भय से उससे पीछे हटना पौरुष नहीं है । कुसुसिका कुछ समय तक कुछ सोचती रही फिर यदि तुम्हारे पास घन कुछ बच रहता मुझे तुम इच्छानुसार उपहार दे पाते --तो क्या आज मुझे छोड़ कर इस सौक के युद्ध में जाते ? र्त्नेश्वर के चेहरे पर मलीन मुस्कान खिल उठी । बोला-- वह्हू हालत सो अब नहीं है कुसुमिका रहने पर मन मुझे किस ओर खींच ले जाता यहूं किसे पता है ? सेरे विचार में तब पुम नहीं जाते




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