खलंगा खुकुरी और फिरंगी | Khalanga Khukuri Aur Firangi
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)त अरंबकम 1८५ ০১০৫ -
১০১৩ উজ
ক मविधाकापपकान :पननर-->पमममरवापथरन्फरन् ८-८
१४ खलंगा, खुकुरी और फिरंगी
की श्रोर चलते हुंगे, भीतरी दालान को पार करते समय उसकी সাজ
किसी को खोज रही थीं ।
स्नान से निवृत हो कनक सीधा उसी कमरे की ओर चला, जहां
वह ठहराया गया था। वहां उसने माया को देखा । इस बार वह अकेली
तथी, एकश्रन्य स्त्री उसके पास खड़ी थी। कनक ने उसकी श्रोर
देखा । यद्यपि रंग गेहुआ था, पर नखशिख सुन्दर और श्राकर्षकं जान
पड़े। हल्के पीले रंग की शुन्यू ” और कत्थई रंग की चोलो” पहने
थी। कमर मे षट्का श्रौर उभरे वक्ष को ढकती सी, छींट की
धलेक ।
कनक ने माया की ओर देखा 1 तनिक हंसकर माया बोली--पह
है काँछी? नाम मात्र के लिये मेरी चेरी, पर मेरी प्रिय सहेली श्राइये
'ज्यूनार' कर लीजिये । द
` कनके बु बोला नहीं-- चुपचाप सिर भुकाकर व हां पीढ़े पर बैठ
गया जहां नाना प्रकार के खाद्य संजोकर थाली में रखे थे ।
_ भाया ने कांछी की ओर देखा और कांछी ने माया की श्रोर । दोनों
मुस्करा दिये।
कांछी बोली--“भारम्भ कीजिए, भोजन ठंडा हो रहां है ।
बिना कुं कहे हीं कनक खाने लगा । कुछ क्षण तक सव चुप रहे ।
कांछी ने ही निस्तव्धता को भंग करते हुए कहा--“नेपाल से कब आना
हुआ आपका ?
~ &अ्रश्नी दो महीने ही हुए हैं ।” बिना सिर उठाये ही कनक
बोला । द |
= “हनुमान ढोका के पास जो भंदिर बन रहा था, पूर्ण हो गया
होगाअबतो 885.
१. चोली कुर्त्ता,
२. कमरवंद की लेटा कपड़ा
1 ৯১ ভীতী হন লিখ হল भरा सम्बोधन, ४. भोजन
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