खलंगा खुकुरी और फिरंगी | Khalanga Khukuri Aur Firangi

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Khalanga Khukuri Aur Firangi  by के. बी. क्षत्रिय - K. B. Shatriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त अरंबकम 1८५ ০১০৫ - ১০১৩ উজ ক मविधाकापपकान :पननर-->पमममरवापथरन्‍फरन्‍ ८-८ १४ खलंगा, खुकुरी और फिरंगी की श्रोर चलते हुंगे, भीतरी दालान को पार करते समय उसकी সাজ किसी को खोज रही थीं । स्नान से निवृत हो कनक सीधा उसी कमरे की ओर चला, जहां वह ठहराया गया था। वहां उसने माया को देखा । इस बार वह अकेली तथी, एकश्रन्य स्त्री उसके पास खड़ी थी। कनक ने उसकी श्रोर देखा । यद्यपि रंग गेहुआ था, पर नखशिख सुन्दर और श्राकर्षकं जान पड़े। हल्के पीले रंग की शुन्यू ” और कत्थई रंग की चोलो” पहने थी। कमर मे षट्का श्रौर उभरे वक्ष को ढकती सी, छींट की धलेक । कनक ने माया की ओर देखा 1 तनिक हंसकर माया बोली--पह है काँछी? नाम मात्र के लिये मेरी चेरी, पर मेरी प्रिय सहेली श्राइये 'ज्यूनार' कर लीजिये । द ` कनके बु बोला नहीं-- चुपचाप सिर भुकाकर व हां पीढ़े पर बैठ गया जहां नाना प्रकार के खाद्य संजोकर थाली में रखे थे । _ भाया ने कांछी की ओर देखा और कांछी ने माया की श्रोर । दोनों मुस्करा दिये। कांछी बोली--“भारम्भ कीजिए, भोजन ठंडा हो रहां है । बिना कुं कहे हीं कनक खाने लगा । कुछ क्षण तक सव चुप रहे । कांछी ने ही निस्तव्धता को भंग करते हुए कहा--“नेपाल से कब आना हुआ आपका ? ~ &अ्रश्नी दो महीने ही हुए हैं ।” बिना सिर उठाये ही कनक बोला । द | = “हनुमान ढोका के पास जो भंदिर बन रहा था, पूर्ण हो गया होगाअबतो 885. १. चोली कुर्त्ता, २. कमरवंद की लेटा कपड़ा 1 ৯১ ভীতী হন লিখ হল भरा सम्बोधन, ४. भोजन




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