ऋक प्रातिशाख्या एवं वाजसनेयि प्रातिशाख्यों का तुलनात्मक अध्ययन | Rik Pratisakhya Evm Vajasaneyi Prashikshan ka Tulnatmak Adhyayn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
162 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रातिशाख्य, वाष्कल प्रातिशाख्य, शाड्खायन प्रातिशाख्य के भी होने की सम्भावना
का उल्लेख किया है।'
प्रातिशाख्यों में प्रतिपादित विषय :-
वेद भी संहिताओं के बाह्य स्वरूप की रक्षा के लिए प्रातिशाख्य- ग्रन्थों का
प्रणयन हुआ। जैसा की पहले कहा जा चुका हे कि प्रत्येक प्रातिशाख्य मुख्यत
किसी चरण विशेष की शाखाओं की संहिताओं से सम्बन्धित होते हैं| अपने चरण
की शाखाओं के संहितापाठ तथा पदपाठ की रक्षा करना ही इनका मूल उददेश्य
है, अतः सभी प्रातिशाख्य तद्विषयक अनेक प्रकार के विधान किये हैँ । इनमें पद
से संहितापाठ तथा संहिता से पदपाठ बनाने के लिए आवश्यक नियम के गये
हें | संहितापाठ तथा पदपाठ दोनो की रक्षा के लिए क्रमपाठ के निर्माणदहेतु भी
प्रायः सभी प्रातिशाख्य मे विधान किये गये हैँ | इसके साथ ही संहितापाठ तथा
पदपाठ विषयक उदात्तादि स्वरों का भी विवेचन किया गया है | संहिता के यन्त्र
के शुद्ध उच्चारण के लिए संहितागत वर्णो के उच्चारण, कतिपय वर्णो के स्वरूप
तथा उदात्तादि स्वरों के उच्चारण विषयक विधान भी किये गये हैँ | इन ग्रन्थों मे
क्रमपाठ, वेदाध्ययन इत्यादि विषयक कतिपय एसे विधान प्रस्तुत है! जो अन्यत्र
उपलब्ध नहीं होते | ২
_प्रातिशाख्यों का पोर्वापर्य :-
प्राचीनता तथा प्रामाणिकता की दृष्टि से ऋग्वेद प्रातिशाख्य अग्रगण्य हैं|
इसके बाद तैत्तिरीय का स्थान है। ऋग्वेद प्रातिशाख्य तथा तैत्तिरीय प्रातिशाख्य
के इस क्रम को सभी विद्वान एकमत से स्वीकार करते हँ । तैत्तिरीय प्रातिशाख्य ` ;
ব্রার किस प्रातिशाख्य का स्थान है, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। डॉ0
_ सिद्धेश्वर वर्मा जैसे कतिपय विद्वान तैत्तिरीय प्रातिशाख्य ख्य कं बाद चतुराध्यायिका .
1. ভবন व्याकरण का इतिहा भाग-2 पर 325
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