ऋक प्रातिशाख्या एवं वाजसनेयि प्रातिशाख्यों का तुलनात्मक अध्ययन | Rik Pratisakhya Evm Vajasaneyi Prashikshan ka Tulnatmak Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रातिशाख्य, वाष्कल प्रातिशाख्य, शाड्खायन प्रातिशाख्य के भी होने की सम्भावना का उल्लेख किया है।' प्रातिशाख्यों में प्रतिपादित विषय :- वेद भी संहिताओं के बाह्य स्वरूप की रक्षा के लिए प्रातिशाख्य- ग्रन्थों का प्रणयन हुआ। जैसा की पहले कहा जा चुका हे कि प्रत्येक प्रातिशाख्य मुख्यत किसी चरण विशेष की शाखाओं की संहिताओं से सम्बन्धित होते हैं| अपने चरण की शाखाओं के संहितापाठ तथा पदपाठ की रक्षा करना ही इनका मूल उददेश्य है, अतः सभी प्रातिशाख्य तद्विषयक अनेक प्रकार के विधान किये हैँ । इनमें पद से संहितापाठ तथा संहिता से पदपाठ बनाने के लिए आवश्यक नियम के गये हें | संहितापाठ तथा पदपाठ दोनो की रक्षा के लिए क्रमपाठ के निर्माणदहेतु भी प्रायः सभी प्रातिशाख्य मे विधान किये गये हैँ | इसके साथ ही संहितापाठ तथा पदपाठ विषयक उदात्तादि स्वरों का भी विवेचन किया गया है | संहिता के यन्त्र के शुद्ध उच्चारण के लिए संहितागत वर्णो के उच्चारण, कतिपय वर्णो के स्वरूप तथा उदात्तादि स्वरों के उच्चारण विषयक विधान भी किये गये हैँ | इन ग्रन्थों मे क्रमपाठ, वेदाध्ययन इत्यादि विषयक कतिपय एसे विधान प्रस्तुत है! जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते | ২ _प्रातिशाख्यों का पोर्वापर्य :- प्राचीनता तथा प्रामाणिकता की दृष्टि से ऋग्वेद प्रातिशाख्य अग्रगण्य हैं| इसके बाद तैत्तिरीय का स्थान है। ऋग्वेद प्रातिशाख्य तथा तैत्तिरीय प्रातिशाख्य के इस क्रम को सभी विद्वान एकमत से स्वीकार करते हँ । तैत्तिरीय प्रातिशाख्य ` ; ব্রার किस प्रातिशाख्य का स्थान है, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। डॉ0 _ सिद्धेश्वर वर्मा जैसे कतिपय विद्वान तैत्तिरीय प्रातिशाख्य ख्य कं बाद चतुराध्यायिका . 1. ভবন व्याकरण का इतिहा भाग-2 पर 325




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