हमारी सभ्यता और विज्ञान कला | Hamari Sabhyata Aur Vigyan Kala
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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कहां शरण ल॑ । कौन-सा देश मुझ का श्रौर मेरे साथियों को शरण दे रहा
है !। फिर ईरानवासियों को ईरान से भी बाहर जाना पड़ा, क्योंकि
ग्रग्नेमन्य (देवता) का कृपा से वहाँ जाड़ा बहुत बढ़ गया था।
इसलिए कृष इंरानी लोग पश्चिम दिशा में बढ़ते चले गए,
वहां पर व्यापार झ्ादि वे पहले भी करते थे | चंकि ये लाग यूरोप के
. निवासियों की अपेक्षा अधिक सभ्य थे इसलिए इनका उन पर प्रभाव
पड़ा । इनकी भाषा, विचार, पूजा-पद्धति वहां अपनाईं गईं। यही कारण
है कि भारत तथा यूराप के कुछ शब्द तथा रीति-रिवाज मिलते हैं।
वास्तव में थ्राय भारतीय ही हें और नहीं; और हमारी सभ्यता का
उद्भव तथा हमार उद्भव यहीं पर हुआ है। बाहर कहीं नहीं । यह कल क
हम पर थोपा गया हैँ कि हम बाहर से श्राए हैं इससे हमारी राष्ट्रीयता
को ठेस पहुंचता है । इस कलंक को मिटाने के लिए बहुत से प्रयत्न हो रहे
पर वे पर्याप्त नहीं हैं। अधिक होने चाहिएं ।
पाता ১ পা
_* खंकि ये लोग भारत जस गमं देश से गये थे इसलिए जाड़ा
इन्हें विपरीत प्रतीत होता है। ध्यान देने की बात है कि इस भ्रकार
हमारे वेदों में ऋतु की विपरीतता नहीं मिलती यदि आय बाहर से आते
तो अवश्य मिलती ॥
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