डॉ. भीमराव अम्बेडकर का भारतीय राजनितिक दर्शन में योगदान | Dr.bheemrav Ambedker Ka Bhartiya Rajnitik Darshan Mein Yogdan

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Dr.bheemrav Ambedker Ka Bhartiya Rajnitik Darshan Mein Yogdan by भास्कर अवस्थी - Bhaskar Awasthi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन में आते। वह देख रहा था कि जाति के कारण व्यक्ति निरन्तर उपेक्षा का शिकार है। इंसान का सम्मान जाति की वजह से ही है। इंसान को जन्म क॑ समय से ही जाति व्यवस्था की सलीब पर चढ़ा दिया जाता है। उसके मन में यह सब विचार उठते रहते। उसे कोई रास्ता नही सूझता। इन सब कारणों की खोज में वह धर्म पर आकर रुक जाता। वह धर्म पर एवं उसके स्वरूप पर विचार करने लगता। वह महसूस कर रहा था, कि किस प्रकार धर्म के नाम पर मनुष्य के बीच नफरत फैलाई जा रही है। भेदभाव की दीवार खड़ी की जा रही है। वह अपनी उपेक्षा का कारण भी समाजगत रूढ़ियों को मानता था। इन सब दुःखों के. बीच वह मित्रों से दूर चुपचाप एकान्त में बैठा रहता। कई बार उसे अपना अस्तित्व समाप्त होता नजर आता तो वह घबराकर कक्षा में चला जाता। वास्तव में यह वह स्थिति थी जिसे डा0 भीमराव अम्बेडकर ने बचपन में भोगा था। यहीं पर उनके मन में अंकुर उठा कि वे जाति व्यवस्था के दूषित प्रभाव को नष्ट करने . का प्रयास करेंगे। भीम एक प्रतिभाशाली एवं अध्यवसायी बालक था। उनका विद्यार्थी जीवन अनेक समस्यायों से यस्त रहा. परन्तु इससे उनकी संकल्प शक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनमें पढ़ने की प्यास तेजी से पैदा हुईं! वे सदैव नई पुस्तकों को पढ़ने के लिये उत्सुक रहते। बालक भीम ने महापुरूषों की जीवनी से जाना कि, महान पुरुष पाठ्य पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तके भी पदा करते थे। बालक भीम के पिता भी चाहते थे কি वे पाद्य पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकें पढ़ें। उनके पिता ने उन्हें मुम्बई कं प्रसिद्ध एलीफिन्सटन कोलज में दाखिला दिलवा दिया। बाद में उन्होंने संस्कृत एवं वैदिक साहित्य का गहरा अध्ययन किया।




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