भारत के आर्थिक विकास में ग्राम्य विकास योजनाओं का योगदान | Bharat Ke Arthik Vikas May Gramya Vikas Yojanao Ka Yogdan
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
201 MB
कुल पष्ठ :
245
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4. पिछले तीन दशका मे विकास की दिशा में किये गये प्रयास ज्यादातर अनुकरणमूलक रहे
हैं और इसलिए अनेक स्थानों पर गलत दिशा में उन्मुख रहे हैं। इतिहास और परम्परा को दिखावें
के तौर पर कुछ महत्व दिया गया है। परन्तु अधिकांशत: देशज सृजनात्मकता को प्रतिबंधित रखा
गया है। एक छोटे अभिजात वर्य ग्राय: प्राश्वात्य द्रष्टिकोण वाले ने वर्तप्रान और मर्विष्य
कं कारे गर प्रमुख निर्णय लिया, साग्रान्य जनवा कीं उसमें कुछ 81 গলি यहीं रहीं।
समाज का सस्थायत सरचना उन्हें अपने भाग्य को निमाण यें बहुत थोड़ी सीं छूट देती
है। तीखी दुतिया को अनेक देशा तानाशाहीं और दयनात्यक शासन में चल रहे हैं। कुछ
में प्रजावनत्र का आउग्बर है। जहाँ प्रजावन्र राजनीतिक अर्थ ये जीवित है, वहाँ जनता
की इच्छा आत्रिजात वर्य वाले राजनीतिक दल से बची होतीं है और उसकी विचारः
कारा में थोड़ा बहुत हीं अन्तर होता है। देशज विकास को [लिट एक नखी सस्यागत
रूप रेखा, जिसमें जनता और उसके साहचर्यो को आधिक निर्णायक मूका विल
सको अपनाना, आवश्यक होगा,
5. विकास की प्रक्रिया को सही अर्थो में सहमागी बनाने वाले प्रयास के विषय में सोचना
आवश्यक है। यह तभी सम्मव होगा जब आम आदमी की सही अर्थों में न कि नाममात्र की सत्ता
और संसाधनों तक पहुंच हों । वह प्रजातन्त्र जहां केवल समय समय पर चुनाव होते रहते है, सही
अथाँ मे सहमागी प्रजातत्र नहीं । लोगो कं द्वारा पहल करने कीं इच्छा को खंडित नहीं करना चाहिए
ओर जनजागरण का अर्थ अभिजात वर्ग द्वारा प्रतिपादित सत्ता के केन्र द्वारा लिये निर्णयो का
आम जनता द्वारा पालन नहीं माना जाना चाहिए। दूसरे शब्दों में लोगों कीं अपने बारे में
वतमान ओर भक्ष्य को कारे गेली निण्य लेने को अतिरक्त विकास कार्यक्रमों को
कार्यान्वयन म गी प्रमुख भूरिका होनी चाहिए।
6. व्यापक स्तर पर विकास की प्रक्रिया पर्यावरण के प्रति सवेदनशीलत नहीं रही है इसका
बड़ा घातक प्रभाव पड़ा हे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि बहुत सी सभ्यता इसलिए समाप्त
हो गयी कि उन्होने पर्यावरण का एक सीमा से अधिक दोहन किया। विलम्ब से हीं सही पश्चिमी
जगत ने इस समस्या को संवेदनशीलता के साथ हल करने मे जागरूकता दिखाई है। तीसरी अधि `
-काश विकासशील देशों मेँ एक गलत धारणा यह फैली हुई है कि उद्योगीकरण कीं निम्न मात्रा के
कारण वे पर्यावरण के प्रमुख खतरों से बचे हुए हैं। यह सच नहीं है। फ्रयावरण कीं चेतना
विकासशील देशों में भीं बढ़ानीं है जिससे कि के अपने पर्यावरण को सरक्षण ओर
आररिवृद्धि को लिए समय पर कदय उठा सके। पर्यावरणविंदों कीं ग्रयानका परिणमोवली
: चेतावर्नियों को मात्र एक फैशन नहीं गानना चाहिए।...
7. विकास ओर नियोजन मेँ एक बहुत बड़ी कममी इस प्रक्रिया को धारण करने की क्षमता का ¦
अभाव है। वे उसकी निर्तरता को बनाए रख सकने मेँ समर्थ नहीं है। अधिकांश विकास शील
9.
User Reviews
No Reviews | Add Yours...