जापान की सैर | Japan Ki Shair  

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Japan Ki Shair   by रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामकृष्ण बजाज - Ramkrishn Bajaj

Add Infomation AboutRamkrishn Bajaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
रगून से याकोहामा १७ था। रहने और खाने के कमरे एयर कडिशन किये हुए थे । खाने- पीने की इफरात थी । हम लोग शाकाहारी थे, फिर भी खाने में हम लोगो को किसी तरह की कोई दिक्कत नही हुई । दिन भर खेल-कद, तालाब में तेरने और डेक पर टेनिस आदि खेलने मे समय कब वीत जाता था इसका पता ही नही चलता था। खाने के कमरे में जो परोसनेवाले थे वे विशेष रूप से ध्यान श्राकरपित करते थे। देखने में बहुत तेज-तर्रार और बडे कार्यकुशल थे । उनके कपडे भी बहुत्त चुस्त और अच्छे लगते थे। १२ अप्रैल को हम लोग सिंगापुर से रवाना हुए थे। हागकाग होते हुए २३ तारीख को जापान के बदरगाह याकोहामा पहुचे । हागकाग में हमारा जहाज दो दिन के लिए रुका था। हागकाग--हागकाग का इतिहास हो ऐसा है जिससे इस स्थान का व्यापारिक महत्व प्रतिपादित होता है। इसकी भौगोलिक स्थिति ने इसे विशेष महत्व का नगर बना दिया है । वास्तव मे इसकी स्थाति १८३६-४२ के 'अभ्रफीम-युद्ध' के बाद बढी है । उस युद्ध में यह वदरगाह उजाड-सा था, पर अग्रेजो ने उसे अपने व्यापारिक जहाजो का अड्डा बनाकर विकसित करना शुरू किया। पहले यह चीन के कब्जे में था, पर १८४२ की नानकिन-सधि के ग्रनुसार यह अग्रेजो के कब्जे मे आगया। ४५ अ्रप्रेल १८४३ से यह्‌ व्विटिण उपनिवेश का एक भाग वन गया। पहले यहा मुख्यत अफीम का व्यापार चलता था, पर १८६६ मे स्वेज नहर खुल जाने के कारण यूरोप के जहाज यहा भाति-भाति की व्यापारिक चीजे लाने लगे। १८६० से १८७० तक यहा गत दस वर्षो से হুলা নাল নালা और अगले दस वर्षो मे वह्‌ चौगुना होगया,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now