चोबीशी स्वोपज्ञ बालावबोध तथा विहारमानवीशी - अतीत चोबीशी सहित | Chovishi Svopagya Balavbodh Tatha Viharmanvishi Atit Chovishi Sahit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : चोबीशी स्वोपज्ञ बालावबोध तथा विहारमानवीशी - अतीत चोबीशी सहित  - Chovishi Svopagya Balavbodh Tatha Viharmanvishi Atit Chovishi Sahit

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वकील मोहनलाल हीमचन्द - Vakil Mohanlal Heimchand

Add Infomation AboutVakil Mohanlal Heimchand

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रथम श्रीऋषभजिन स्तवन- २११९५ ~~~ छे, अथम द्रन्यथी हं अशुद्धपरिणतिविमागकमासुयायी, पुद्रल भावमोगी, तेथी अशुद्ध द्रव्य दु, अने श्रीमगवान्‌ तो शद्ध- परिणामी, सकल निगवरणस्वमावी, निःकमी, अनंत अक्षय- ज्ञानादिस्वगुणभोगी, तेथी शुद्धद॒व्य छे, बीजु क्षेत्रेकरी हुं से- सार चेत्री, शरीराबगाही छु, अने श्रीक्रपमप्रशच तो लोकांत च्रे रह्मा छे, अशरीरी, स्वप्रदेशावगाही छे, तेथी क्षेत्रें करी भिन्न छेयें, तेमज त्रीजुं काले पण भिन्न छेयें. अने भावथी हूं रागी, ठेपी, तथा अठार पापस्थानके भ्यो हु, भते श्री देवाधिदेव বী नीरागी, सर्वपापस्थानरदित छे, मटे भ्रीप्रश्चुजी ह्मणां तो स्म रीत ्ठकथी वेगला वसे छे, बल्ली अलगाने पण वचनादिके मलियें, पण श्रीऋपभदेव सिद्ध थया, तिहां सिद्ध ्रवस्थामां कोई वचनन उच्चारघुं नथी, त्यरे प्रीति केम कराय १ इति गायाये। ॥ शा कागल पण पदीचे नही, नपि परहीवे हो तिहां को परधान ॥ जे पहाँचे ते तुम समो, नवि भांखे हो कोईसु(नो)व्यवघान ॥ ऋ० ॥२॥ अथे।--तथा एक वीजो पण प्रीति करवानो उपाय ये, ने कागज वड प्रीति थाय छे, पण सिद्धने विषे कागरे पण पहोंचे नदीं तथा कागल नहीं पोच तो कोई माणस मूकीर्य पण विदा सिद्धावस्थाने विषे कोई प्रधान पण पहोंचे नहीं; के जेनी सार्थे विनति कदाविरये. इहां को जीवने संशय उपने के रत्मन्नयी आराधीने अनेक जीव मोत्ते जाय छे, तो कोई न पहुँचे एम केम कह्दों छो? ते उपर करे छे जे विदां सिद्धावस्थाने चिषे ञे पोच ते तम समो, तम जेवो प्रश्चता- मय, चीत्तराग, अयोगी, श्रसंगी, सकलक्ञायक, पणं घचनरदित ९




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now