श्री महावीर स्वामी चरित्र | Shri Mahavir Sawami Charitra

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Shri Mahavir Sawami Charitra by दीपचन्द्र परवार -Deepchandra Parwar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( & ) जल से, अपने हाथों ते प्रनिदिर ॐ निकट अश्र ( धर्मशाला) आदि में बैठ कर विधिपूर्वकं बनाया हो, क्योंकि हलवाई ( कंरोई ) के यहां का बताया हुआ तथा सार्ग में ( मल्मूत्रादि अपविन्र बस्तुओं के होन के कारण ) चज्ञ कर लाया हुआ या पादत्राग ( जूतादि ) पहर कर लाया हुआ या बिना घुज्े, सब से स्पर्शित वल्न पहिरें हुर या बिदेशी अपविद्र या चर्बी से लग कर बनने वाले देशी मिल्ों के बच्च पहिरे हुए या रेशप (हिंसा से उत्पन्न हान মালা) या उन (उन वाले प्राणियों को सताऊर पैदा जिया जाने ল্রান্না) वस्म पढिर कर लाया हुआ या बनाया हुमा लड॒डू अपवित्र होने से चढ़ाने के योग्य नदीं हाना, अपवित्र पदार्थ के पूजा में चढ़ाने से पुण्य के बदले उछ्टा पाप बनन्‍्च होता हैं, इसलिये शुद्ध खादी का धुला हुआ सूती वस्त्र पहिर कर ही विधिपूर्वक शुद्ध द्रव्यों से बनाया हुआ लड॒हू ही चद्ाना चाहिये । पश्चात शांति विर्नर्जन करके इसी पुस्तक में पीछे लिखे हुए भजन, स्तुति बोल कर श्रीमहाबीर प्रभु की, भ्रीमीत्तम गण- घर को, श्री जिनवानी की जय बोल | इस प्रकार हर्पोत्माह सहित पूजन विधान करके समा- गृहमे समी नर-नारी, वाल-जालिकोश्मौ सहित शांतिस चेठं और इसी पुस्तक में लिखे हुए श्रीमहात्रीर भगवान का লীঙ্গল- चित्र पढ़े -उुर्ने, पश्चात्‌ पद व जिनवानो ङी स्तुति बोजेकर जयकारे के साथ उत्यव पूर्ण ऋरके घर जावें और अवतिथि- सत्कार या करुणादान आदि करके कुटुम्बियों सम्बन्त्रियों या इृए मित्रादि सहित भोजन करे, तथा जिनको लोफ व्यवहार




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