हार | Haar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.32 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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No Information available about श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बन श् श् अन्य ममता तथा तन्मयता से भरा उस कथानक का सौन्दर्य पट बुन गए मुझे अब ठीक्-ठीक स्मरण नहीं। सम्भवतः अपने किशोर मन की कुछ अस्फूद भावनाओं एवं अस्पष्ट विचारों को कथा के रूप में गूँथने के लिए ही मैंने उस लघु उपन्यास की काग़ज़ की नाव को साहित्य के सिन्धु में प्रथम प्रयास के रूप में छोड़ने का दुः्साहुरा किया हो। उस कांग्रज़ की नाव पर बैठ कर आधे दर्जन लोग बिना मानव मन की गहराइयों को छुए बिना शिल्प की पतवार घुमाएं या अनुभव के डाँड चलाए किस प्रकार ऊपर ही ऊपर भावों के फेन को चीरते हुए पार हो सके मैं आज भी इस बात को सोच कर आइचर्य में डूब जाता हूं। खेर किशोर मन ढीठ नहीं तो दुःसाहसी तो होता ही है। सौभाग्य से या दुर्भाग्य से उस उपन्यास की पांडुलिपि इस समय मेरे पास नहीं है वहू मेरे एक स्नेही मित्र की आलमारी या संदूकची में दूसरे नगर में सुरक्षित रक्खी है--सम्भवतः मेरे बाल-चापल्य के उदाहरण के रूप में । पर अपने उस बाल-प्रयास के बारे में मुझे जो कुछ स्मरण है उसे आपके मनोरंजन के लिए निवेदन करता हूँ । उपन्यास का साम मैंने रखा था हार । हार का अर्थ पराजय तथा माला--दोनों ही उस उपन्यास के कथ्य से सार्थक हो जाते थे। इस प्रकार हार दाब्द में एक प्रकार का इलेप था जो मुझे तब बड़ा व्यंजनापूर्ण प्रतीत होता था । कथानक छोटा ही था पर लिखने को ढंग अथवा अभिव्यवित अलंक्ररण-पूर्ण होने के कारण--जोकि उस अवस्था के लिए स्वाभाविक ही था--उपन्यांस मानव-चारित्र एवं मनोविज्ञान से अधिक मेरे शाब्दिक़ ज्ञान का ही परिचय देता था । उसकी पृष्ठ- संग्या राम्भवतः २०० के लगभग होगी । कथानक कुछ इस प्रकार था एक भावुक युचक एक नवसुवती के रूप से आछृष्ट होकर उसे बिना अपना प्रणय निवेदन किए चुपचाप अपने हृदय के आसन पर बिठा लेता है। युवती अपने मां-बाप के साथ ग्रीप्स ऋतु में एक दो महीनों के लिए किसी पहाड़ी प्रांत में घूमने-फिरने के लिए आए हुई है। प्राकृतिक सौन्दर्य के उस मनोरम
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